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सुखद खबर # सीमांत गुरू गोरखनाथ धाम में पहुंची पेयजल सुविधा

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चम्पावत जनपद के सीमांत तल्लादेश में स्थित गुरु गोरखनाथ धाम। फाइल फोटो

चम्पावत। जनपद के सीमांत तल्लादेश में स्थित गुरू गोरखनाथ धाम में पहुंचने वाले देश विदेश के श्रद्धालुओं के लिए सुखद खबर है। विधायक कैलाश गहतोड़ी के प्रयासों से बेहद ऊंचाई में स्थित गुरू गोरखनाथ धाम में पेयजल सुविधा उपलब्ध हो गई है। जल संस्थान की ओर से करीब 25 लाख रुपये की लागत से गुरू गोरखनाथ धाम के लिए ट्यूबवेल के माध्यम से पेयजल लाइन बिछा दी है। अब गुरू गोरखनाथ धाम में आने वाले श्रद्धालुओं को पेयजल संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।
जल संस्थान के अधिशासी अभियंता बिलाल युनूस ने बताया है कि विभाग की ओर से 24.93 लाख रुपये की लागत से करीब 1100 मीटर लाइन बिछाकर गुरू गोरखनाथ धाम तक पीने के पानी की सुविधा मुहैया करा दी गई है। पेयजल योजना के लिए हरम के पास 360 मीटर की बोरिंग कर ट्यूबवेल स्थापित किया गया है। ट्यूबवेल से पंपिंग के जरिये 11 सौ मीटर की खड़ी चढ़ाई में सफलतापूर्वक पेयजल आपूर्ति शुरू कर दी गई है। गुरू गोरखनाथ धाम में पेयजल आपूर्ति शुरू होने पर धाम के महंत सोनू नाथ, सामाजिक कार्यकर्ता शेर सिंह महर, राहुल सिंह महर, बची सिंह, दलीप सिंह, अर्जुन सिंह महर, गोविंद सिंह आदि ग्रामीणों ने खुशी का इजहार किया है।

सतयुग से अखंड धूनी जलने के लिए प्रसिद्ध है गुरू गोरखनाथ
चम्पावत। जिले की नेपाल सीमा से लगे तल्लादेश क्षेत्र के मंच में स्थित गुरू गोरखनाथ धाम अपनी अनूठी मान्यताओं के कारण देश-विदेश में लोकप्रिय है। मान्यता है कि धाम में सतयुग से अखंड धूनी जलते आ रही है। इसी अखंड धूनी के प्रसाद को धाम में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को बतौर प्रसाद में बांटा जाता है। मंदिर की अखंड धूनी में जलाई जाने वाली बांज की लकड़ियां जलने से पूर्व धोई जाती है। धाम में नाथ संप्रदाय के साधुओं की आवाजाही बनी रहती है। जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर यह स्थान ऊंची पर्वत चोटी पर स्थापित है। यहां पहुंचने के लिए मंच तक वाहन से जाया जा सकता है। उसके बाद दो किमी की पैदल यात्रा होती है। कहा जाता है कि सतयुग में गोरख पंथियों ने नेपाल के रास्ते आकर इस स्थान पर धूनी रमाई थी। हालांकि धूनी का मूल स्थान पर्वत चोटी से नीचे था। लेकिन बाद में उसे वर्तमान स्थान पर लाया गया। जहां आज भी अनवरत धूनी प्रज्जवलित है। धाम के महंत सोनू नाथ के अनुसार सतयुग में गुरु गोरखनाथ ने यह धुनी जलाई थी। मंदिर में करीब 400 वर्ष पूर्व चंद राजाओं की ओर से चढ़ाया गया घंटा भी मौजूद है।