इंदर आर्या : 15 साल बनाया खाना, अब बना रहे गाना, पहाड़ ही नहीं विदेशों में लोग गा रहे- गुलाबी शरारा
कुमाऊं गायक कलाकार इंदर आर्या इन दिनों सोशल मीडिया पर जमकर छाए हुए हैं। उनके एक गीत पर रील की बाढ़ सी आ गई है। सात समुंदर पार तक के लोग भी रील बनाने में पीछे नहीं है। कई सेलेब्रेटी भी इस गीत पर थिरक रहे हैं।
कभी होटल मे शेफ रहे इंदर के गाने के बोल…ठुमक ठुमक जब हिटैछि तू पहाड़ी बटुमा, छम छम पायल घुंघरू, बजनि त्यार खुटुमा… पर इंस्टाग्राम पर 30 लाख से अधिक लोग रील बना चुके हैं। रील बनाने वालों में कॉमेडियन भारती सिंह सहित कई सेबेब्रिटी शामिल हैं। यहीं नहीं तंजानिया के सोशल मीडिया इंफ्लूएशर किली पॉल ने भी इस पर लिप्सिंग और डांस कर खूब वाहवाही लूटी। यह यूट्यूब के ट्रेंडिंग गानों में शुमार हो चुका है। वह बताते हैं कि गुलाबी शरारा चार महीने पहले रिलीज हुआ था। तीन माह इसका सामान्य रिस्पांस रहा लेकिन एक माह पहले ये वायरल हो गया।
संघर्ष भरा रहा है जीवन
इंदर के परिवार में माता-पिता के अलावा पत्नी और दो बेटे हैं। उनका शुरुआती जीवन बेहद संघर्ष भरा रहा है। अल्मोड़ा के दन्या के समीप स्थित बागपाली गांव में जन्मे इंदर ने वहीं से अपनी 12वीं तक की पढ़ाई की। बाद में काम की तलाश में उन्होंने न चाहते हुए भी शहर का रुख किया। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के कई होटलों में 15 साल बतौर शेफ काम किया।
सहकर्मियों ने किया गाने के लिए प्रेरित
इंदर बताते हैं कि उनकी मां की आवाज बहुत सुरीली है। वह अच्छा गाती हैं। बचपन से ही वह गाने गुनगुनाते तो थे लेकिन इसे करिअर बनाने की उन्होंने नहीं सोची। अंबाला में काम करने के दौरान सहकर्मियों ने उन्हें गाना गाने के लिए प्रेरित किया। इसी बाद 2018 में उन्होंने गायन के क्षेत्र में कदम रखा।
पांच साल में 500 से अधिक गाने
संगीत की दुनिया में पदार्पण के बाद से अब तक पांच साल में इंदर पांच सौ से अधिक गाने गा चुके हैं। उनके 20 गानों को करीब दो करोड़ और लगभग 50 गानों को 10-10 लाख व्यूज मिल चुके हैं। अब तक वह सौ से अधिक लाइव शो कर चुके हैं। इनमें दो शो विदेश में भी हुए हैं। इससे पहले उनके गीत तेरो लहंगा… ने भी खूब धमाल मचाया था। इसके अलावा हे मधू, हिट मधुली, हफ्ते में… आदि गाने भी हर कोई गुनगुनाता नजर आता है।
पहाड़ में मूलभूत सुविधाएं चाहिए
इंदर पहाड़ से लगातार हो रहे पलायन पर चिंतित हैं। कहते हैं कि पहाड़ में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। उन्हें खुद अपने गांव पहुंचने के लिए पैदल चलना पड़ता है। पहाड़ में मूलभूत सुविधाओं के अलावा रोजगार के अवसर मिले तो उन जैसे युवाओं को शहरों का रुख नहीं करनापड़ेगा। कहते हैं कि भविष्य में मौका मिला तो वह पहाड़ की पीड़ा को दिखाने वाले गीत लिखेंगे।