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इंडियन आइडल पवनदीप # डेढ़ साल की उम्र में थाली पर बजाई थी पहली ताल, पिता के संघर्ष ने दिलाया मुकाम

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छोटी से उम्र में खेतीखान में आयोजित होने वाले दीप महोत्सव में तबदला वादन करते पवनदीप राजन। फोटो : सोशल मीडिया

उत्तराखंड के चम्पावत में नगर से सटे ग्राम तल्ली चौकी में रहने वाले पवनदीप राजन ने कमाल कर दिया। वह देश के सबसे बड़े सिंगिंग रियलटी शो इंडियन आइ​डल के 12वें सीजन के विजेता बने हैं। शो में पवनदीप इकलौते ऐसे प्रतिभागी रहे जो विभिन्न तरह के वाद्य यंत्र बजाते हैं। पवनदीप की कामयाबी पर आज पूरा उत्तराखंड ही नहीं पूरा देश नाज कर रहा है। पवनदीप की कामयाबी के पीछे उनके पिता का बड़ा हाथ है। उनके पिता सुरेश राजन बताते हैं कि पवनदीप ने डेढ़ साल की उम्र में सबसे पहले अचानक थाली पर दादरा की ताल बजाई थी और तीन साल की उम्र से तबला वादन शुरू कर दिया था। पवनदीप को चम्पावत जिले के एक छोटे से गांव से मायानगरी मुंबई तक पहुंचाने में उनके पिता सुरेश राजन का योगदान बेहद अहम रहा है। महज तीन साल की उम्र से पिता ने पवनदीप को गीत-संगीत की बारीकियां सिखाने के साथ ही विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों को बजाना सिखाया। यही कारण है कि वर्तमान में पवनदीप लोकप्रियता की उंचाईयों को छू रहे हैं।

अपने पिता सुरेश राजन की गोद में बैठे नन्हे पवनदीप राजन।


पवनदीप के पिता राजन भी लोकगायक हैं। बचपन से ही पवनदीप की रूचि संगीत में थी और उनकी इसी रूचि को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें संगीत का प्रशिक्षण देना शुरू किया। वह तीन साल की उम्र से ही पवनदीप को अपने कंधे पर बैठाकर खुद के स्टेज शो और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ले जाते थे। बचपन से ही पवन के हुनर को पिता सुरेश ने तराशने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। पवन की संगीत के प्रति बढ़ती रूचि देखकर उन्होंने अपना काम छोड़कर पवन को गीत संगीत में पारंगत बनाया। इससे पहले पवनदीप एंड टीवी के टेलेंट शो द वॉयस ऑफ इंडियाज के पहले सत्र के विजेता बने थे। उन्होंने वर्तमान में कई फिल्मों और एलबमों में भी गाने गए हैं। इसके बाद अब वे इंडियन आइडल शो के विनर बने हैं। उन्हें प्रतियोगिता की ट्राफी के अलावा 25 लाख रुपये का चेक और एक स्विफ्ट कार इनाम में मिली है। पवनदीप को शो के जजों के साथ ही दर्शकों का लगातार समर्थन मिल रहा था। पवनदीप को शो का विजेता बनाने के लिए उत्तराखंड के तमाम सोशल मीडिया ग्रुप पर लोग एक दूसरे से वोट देने की अपील कर रहे थे। इसके अलावा राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी उत्तराखंड की जनता से पवनदीप को विजेता बनाने के लिए अपील की थी। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उन्हें उत्तराखंड का ब्रांड एंबेसडर बनाया था। पवनदीप का खिताब उत्तराखंड के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है। पहाड़ी क्षेत्र में जो युवा संगीत के क्षेत्र में नाम कमाना चाहते हैं वह भी पवन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ सकते हैं। पवनदीप राजन के पिता सुरेश राजन पवनदीप के गायकी के सफर को मुकाम तक पहुंचाने में मीडिया की ओर से मिले अपार समर्थन को अभूतपूर्व बताते हैं। उनका कहना है कि बचपन से ही मीडिया ने पवनदीप की प्रतिभा को हर स्तर पर प्रोत्साहित किया गया। उनके संघर्ष और मेहनत के संबंध में परिजनों के साथ ही मीडिया का सहयोग बेहद उल्लेखनीय है। बता दें कि पवनदीप राजन ने कोरोना महामारी के कारण एक वर्ष पूर्व अपने ही घर में आधुनिक रिकार्डिंग स्टूडियो भी खोला है। जिसमें स्थानीय कलाकारों को रिकार्डिंग की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। उनके पिता सुरेश राजन बताते हैं कि स्थानीय स्तर पर रिकार्डिंग की सुविधा नहीं होने के कारण कलाकारों को हो रही दिक्कतों को देखते हुए पवन ने रिकार्डिंग स्टूडियो खोला है।