किरेन रिजिजू से छीना गया कानून मंत्रालय, अर्जुन राम मेघवाल को मिली जिम्मेदारी
मोदी सरकार में अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारियां निभा चुके किरेन रिजिजू से कानून मंत्रालय छीन लिया गया है। बताया गया है कि इस मंत्रालय की जिम्मेदारी अब अर्जुन राम मेघवाल को सौंपी गई है। राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई। इसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्यों को विभागों का पुन:आवंटन किया है।
विज्ञप्ति के मुताबिक, किरेन रिजिजू को अब पृथ्वी-विज्ञान मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इससे पहले केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह इस मंत्रालय को संभाल रहे थे। वहीं, मेघवाल को कानून राज्य मंत्री के तौर पर स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। मेघवाल पहले से ही संस्कृति मंत्रालय और संसदीय मामलों के मंत्रालय में राज्यमंत्री के पद पर हैं।
इस बीच, रिजिजू ने एक ट्वीट में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री के रूप में कार्य करना उनके लिए ‘एक विशेषाधिकार और सम्मान’ की बात रही है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों, निचली न्यायपालिका और सभी कानून अधिकारियों को न्याय की सुगमता सुनिश्चित करने और हमारे नागरिकों के लिए कानूनी सेवाएं प्रदान करने में भारी समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं।’’
रिजिजू ने कहा, ‘‘मैं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए उसी उत्साह और जोश के साथ काम करने को तत्पर हूं, जिसे मैंने एक विनम्र कार्यकर्ता के रूप में आत्मसात किया है।’’
किरेन रिजिजू से केंद्रीय कानून मंत्रालय वापस ले लिया गया है, समझें क्यों लेना पड़ा फैसला …
किरेन रिजिजू से केंद्रीय कानून मंत्रालय वापस ले लिया गया है। अब इस मंत्रालय की जिम्मेदारी अर्जुन राम मेघवाल को सौंपी गई है। राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्यों को विभागों का पुन:आवंटन किया है।
किरेन रिजिजू को अब भू-विज्ञान मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अब तक यह विभाग केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के पास था। वहीं, मेघवाल को कानून राज्य मंत्री के तौर पर स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। मेघवाल के पास पहले से ही संस्कृति मंत्रालय और संसदीय मामलों के मंत्रालय की जिम्मेदारी है। अचानक हुए इस फेरबदल के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर किरेन रिजिजू से कानून मंत्रालय क्यों वापस लिया गया? इसके पीछे सरकार की क्या मंशा है? आइए समझते हैं…
पहले किरेन रिजिजू के बारे में जान लीजिए
किरेन रिजिजू का जन्म 19 नवंबर 1971 को अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले में हुआ है। 51 साल के रिजिजू पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा के बड़े चेहरों में से एक हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बीए की पढ़ाई की है। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से ही 1998 में लॉ की डिग्री हासिल की। रिजिजू के पिता रिनचिन खारू भी सक्रिय राजनीति में थे। वह अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के पहले प्रोटम स्पीकर थे और उन्होंने ही सूबे में पहली विधानसभा के लिए चुने गए विधायकों को शपथ दिलाई थी। किरेन की मां का नाम चिराई रिजिजू है। रिजिजू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत खादी और ग्रामीण इंडस्ट्री कमीशन के सदस्य के तौर पर की थी। वह इस पद पर साल 2000 से 2005 तक बने रहे। 2004 में पहली बार अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा के सांसद चुने गए। 2009 में वह कांग्रेस के प्रत्याशी से महज 1314 वोटों से हार गए। 2014 में दूसरी बार रिजिजू संसद के सदस्य बने। तब उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को 43 हजार से भी ज्यादा मतों से हराया। उन्हें इसका इनाम मिला और नरेंद्र मोदी की पहली कैबिनेट में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री बना दिया गया। 2019 में रिरिजू तीसरी बार सांसद के तौर पर रिकॉर्ड मतों से चुने गए और मोदी कैबिनेट में उन्हें खेल और युवा मामलों का मंत्री बना दिया गया। तब उनके पास अल्पसंख्यक विभाग का राज्य प्रभार भी था। 2021 में जब रविशंकर प्रसाद को केंद्रीय कैबिनेट से हटाया गया तो उनकी जगह रिरिजू को कानून मंत्री बना दिया गया। रिरिजू देश के 34वें कानून मंत्री रहे।
रिजिजू से कानून मंत्रालय छीने जाने के पीछे राजनीतिक विश्लेषक इस तरह की संभावना जता रहे हैं…
- न्यायपालिका की लड़ाई को पब्लिक प्लेटफॉर्म पर लाना: सरकार और न्यायपालिका के बीच लड़ाई कोई पहली बार नहीं हो रही थी। इसके पहले भी कई बार पावर क्लैश हो चुका है लेकिन आमतौर पर दोनों के बीच की ये लड़ाई अंदरखाने ही शांत हो जाती थी, लेकिन पिछले कुछ समय से ऐसा नहीं हो पा रहा है। कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर किरेन लगातार न्यायपालिका पर सवाल उठा रहे थे। सार्वजनिक तौर पर वह न्यायपालिका और न्यायाधीशों को लेकर तंज कस रहे थे। इससे न्यायपालिका और सरकार के बीच की दूरियां बढ़ने लगी थीं।
इसके पहले 2018 में भी न्यायपालिका और सरकार के बीच की लड़ाई सड़क पर आ गई थी। तब देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कई सवाल खड़े किए थे। तब कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद थे। दो साल बाद उन्हें हटाकर किरेन रिजिजू को ये जिम्मेदारी दी गई थी। अब रिजिजू खुद इसी चक्कर में फंस गए। सरकार नहीं चाहती है कि 2024 तक न्यायपालिका से कोई लड़ाई हो। संभव है कि इसी के चलते रिजिजू का मंत्रालय बदला गया हो।
- कानून मंत्री के बयान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले : कानून मंत्री रहते हुए किरेन रिजिजू लगातार न्यायपालिका पर सवाल उठा रहे थे। उधर, न्यापालिका भी इस मसले पर गंभीर थी। पिछले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट के कई ऐसे फैसले आए, जो एक तरह से केंद्र सरकार के खिलाफ ही थे। ऐसे में अगर रिजिजू और न्यायपालिका के बीच का ये विवाद आगे भी जारी रहता तो आने वाले दिनों में केंद्र सरकार को ज्यादा फजीहत का सामना करना पड़ सकता था। अगले साल लोकसभा चुनाव भी है। इसलिए संभव है कि सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी।
- अरुणाचल और राजस्थान चुनाव पर फोकस? : अगले साल अप्रैल में ही अरुणाचल प्रदेश में भी चुनाव होने हैं। ऐसे में संभव है कि इसकी तैयारियों के लिए रिजिजू को फ्री किया गया हो। कानून मंत्री रहते हुए वह ज्यादा समय अरुणाचल प्रदेश में नहीं दे सकते थे। कर्नाटक में हार के बाद भाजपा कोई नया रिस्क नहीं लेना चाहती है। हो सकती है कि रिजिजू को अरुणाचल प्रदेश पर ज्यादा फोकस करने के लिए कहा गया हो।
वहीं, दूसरी ओर राजस्थान में इसी साल चुनाव होने हैं। रिजिजू बौद्ध धर्म से आते हैं और मेघवाल भी अनुसूचित जाति से आते हैं। अर्जुन राम मेघवाल राजस्थान के बीकानेर से लोकसभा सांसद हैं। वह तीसरी बार सांसद चुने गए हैं। ऐसे में संभव है कि एक तरफ रिजिजू का फोकस अरुणाचल प्रदेश करने और इधर, राजस्थान में विधानसभा चुनावो के मद्देनजर मेघवाल की पद्दोन्नति करके भाजपा राजनीतिक फायदा उठाने की उम्मीद कर रही हो।