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कुमाऊं की पारंपरिक कला को संवारने में जुटी पहाड़ की बहू आकांक्षा, ऐपण कला से आकांक्षा ने बनाई नई पहचान

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उत्तराखंड का युवा वर्ग संस्कृति के प्रचार- प्रसार में जुटा हुआ है। लोकसंगीत से लेकर पहाड़ की संस्कृति तक उत्तराखंड की हर पारपंरिक विधा को संवारने में जुटे हैं। आज देवभूमि की बेटियां हर क्षेत्र में आगे हैं। सेना से लेकर खेल के मैदान व बॉलीवुड जगत तक में पहाड़ की बेटियां अपना लोहा मनवा रही हैं। इन्ही नामों में से एक नाम है आकांक्षा बिष्ट का। पहाड़ की इस बहू ने अपनी कला का लोहा मनवाते हुए कुमाऊं की पारपंरिक कला के दर्शन आज के युवाओं को कराये हैं। मुक्तेश्वर के प्यूड़ा निवासी आकांक्षा बिष्ट ने अपनी ऐपण कला से कुमाऊं की पारपंरिक कला को संवारने का काम किया है। पहाड़ों में ऐपण आपको हर घर में देखने को मिल जायेंगे। आकांक्षा बताती हैं कि वह दो सालों से ऐपण कला का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। वर्तमान में वह हल्द्वानी से पढ़ाई कर रही हैं।

ऐपण को संवार रही आकांक्षा
आकांक्षा इस कला को सीखने के साथ ही इसके महत्व को समझाने के लिए युवाओं और महिलाओं को प्रोत्साहित कर रही हैं। साथ ही वह उन्हें इस तरह प्रशिक्षित करती हैं जिससे वे इस पारपंरिक कौशल का उपयोग आय के लिए अनुकूलित उत्पाद बनाने में कर सकें। वे ऐपण डिजाइनों को नेंमप्लेट्स, दीये ,कोस्टर्स, पूजा थाल इत्यादि में पेंटिंग करती हैं।

युवाओं के लिए बड़ा संदेश
आकांक्षा का कहना है कि आने वाली पीढ़ियों में कुमाऊं की पारपंरिक संस्कृति के इस बेशकीमती हिस्से को विकसित कर सकेंगे। आज पहाड़ से पलायन तेजी से हो रहा है ऐसे में ज्यादातर लोग शहरों में बस रहे हैं। पहाड़ों में संयुक्त परिवार की कमी इस कला को विलुप्त कर रहा है। आज कई उत्तराखंड के बाहर पले-बढ़े युवाओं को ऐपण शब्द के बारे में पता भी नहीं है। अगर यह सिलसिला जारी रहा तो आने वाले समय में लोक कला की यह धरोहर और इससे जुड़ी सांस्कृतिक मान्यताएं विलुप्त हो जाएंगी। कुमाऊं की इस शानदार विरासत और धार्मिक महत्व के शिल्प को सहेजने और पुनजीर्वित करने की जरूरत है। इसी विरासत को बचाने में पहाड़ की बहू आकांक्षा बिष्ट जुटी हैं।

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