उत्तराखण्डउधमसिंह नगरनवीनतम

रूस यूक्रेन युद्ध में सितारगंज के राकेश हुए शहीद, गांव पहुंचा पार्थिव शरीर, परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़

Ad
ख़बर शेयर करें -

रुद्रपुर। उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले से एक दुखद खबर आ रही है। बेहतर शिक्षा और भविष्य का सपना संजोए युवक की रूस मे जिंदगी चली गई। घटना के बाद से युवक के परिजनों का रो रो कर बुरा हाल है। उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।

जानकारी के अनुसार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गुर्जर पलिया बदायूं व वर्तमान मे उधम सिंह नगर जिले के सितारगंज के कुशमौठ शक्ति फार्म के निवासी 30 वर्षीय राकेश मौर्य पुत्र राजबहादुर सिंह मौर्य बीते 5 अगस्त को स्टडी वीजा पर रूस पहुंचे थे। राकेश ने जीआईसी के शक्तिफार्म से ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा ली थी। जिसके बाद उन्होंने बीएससी की और आईटी में डिप्लोमा हासिल किया था। पढ़ाई में होनहार राकेश का मकसद सिर्फ उच्च शिक्षा हासिल करना था, जिसके तहत उन्हे सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना था लेकिन रूस पहुंचते ही राकेश की दुनिया एक झटके में बदल गई।

Ad

राकेश के परिजनों ने आरोप लगाया कि राकेश को धोखे से सेना में भर्ती कर लिया गया था। इतना ही नहीं राकेश के हाथों में किताबों की जगह बंदूक थमा दी गई थी। बीते 30 अगस्त 2025 को राकेश ने अपने परिवार को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी थी। जिसमें उन्होंने बताया कि रूसी सेना ने उनका पासपोर्ट और सभी जरूरी दस्तावेज छीन लिए ​हैं। मोबाइल और लैपटॉप से आधिकारिक मेल तक डिलीट कर दिया गया था। इसके बाद रूसी भाषा में लिखे दस्तावेजों पर राकेश से जबरदस्ती हस्ताक्षर कराए गए और सेना की वर्दी पहनाकर उन्हे डोनबास क्षेत्र में ट्रेनिंग और युद्ध के लिए भेजा गया।

राकेश के छोटे भाई दीपू ने जानकारी देते हुए बताया कि बड़े भाई कि सुरक्षित वापसी के लिए भारतीय दूतावास से संपर्क किया गया था। इस मामले में विदेश मंत्रालय और स्थानीय प्रशासन से भी संपर्क साधा गया लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद राकेश की जिंदगी नही बच पाई। परिजनों से हुई आखिरी बातचीत के बाद कुछ दिन बाद ही राकेश की जंग में जिंदगी चली गई। जैसे ही राकेश कि यूक्रेन मे हुए बम ब्लास्ट से मौत की खबर राकेश के परिजनों को मिली तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। राकेश का पार्थिव शरीर बुधवार 17 दिसम्बर को उनके घर ले जाया गया, जहां पर हर किसी की आंखें नम थी।

राकेश की सलामती के लिए उनकी मां रोज घर में दीया जलाती थी और दरवाजे पर ही उनकी निगाहें टिकी रहती थीं। उन्हें कहीं ना कहीं उम्मीद थी कि उनका बेटा सुरक्षित वापस घर लौट आएगा, लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। रूस में फंसे बेटे की सलामती के लिए दिन रात परिजन दुआएं मांग रहे थे, मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। तीन भाइयों में राकेश सबसे बड़े भाई थे, जिनकी शहादत के बाद से परिजन पूरी तरह से टूट चुके हैं। राकेश का एक भाई बेंगलुरु में नौकरी करता है जबकि छोटा भाई बीटेक की पढ़ाई कर रहा है।