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विश्व फार्मासिस्ट दिवस पर चम्पावत जिला अस्पताल में किया गया गोष्ठी का आयोजन

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चम्पावत। बुधवार 25 सितंबर को जिला चिकित्सालय चम्पावत में विश्व फार्मासिस्ट दिवस पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें डिप्लोमा फार्मासिस्ट एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष विष्णु गिरी गोस्वामी ने विश्व फार्मासिस्ट दिवस पर विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले फार्मासिस्टों का सम्मान करना है।

विश्व फार्मासिस्ट दिवस को मनाने की शुरुआत वर्ष 2009 में इस्तांबुल (तुर्की) में इंटरनेशनल फार्मास्युटिकल फेडरेशन (FIP) के द्वारा की गई थी। FIP एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो दुनिया भर के फार्मासिस्टों का प्रतिनिधित्व करता है। जिसका मुख्य उद्देश्य फार्मेसी के क्षेत्र में मानकों को बढ़ावा देना है और सेहत सेवाओं को बेहतर बनाना है। इस वर्ष की विश्व फार्मासिस्ट दिवस की थीम ‘फार्मासिस्टः वैश्विक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करना’ है।
यह दिन हमें फार्मासिस्टों की स्वास्थ्य के क्षेत्र में भूमिका से अवगत करवाता है। यह दिन हमें बताता है कि फार्मासिस्ट फार्माकोलॉजी, फार्मास्यूटिकल्स की स्टडी करते हैं। फार्मासिस्ट उचित दवाओं को रोगियों तक पंहुचाने के लिए एक कड़ी की तरह कार्य करते हैं। वे डॉक्टरों और nursing cader के साथ मिलकर रोगियों की देखभाल का काम करते हैं। फार्मासिस्ट टीकाकरण कार्यक्रमों, रोगी शिक्षा और मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी पुरानी बीमारियों के प्रबंधन में बड़ी भूमिका निभाते हैं। फार्मासिस्ट रोगियों को दवा देने से पहले चिकित्सकों के नुस्खों की जांच करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रोगियों को गलत दवा न मिले या वे दवा की गलत खुराक न लें।

कहा कि वर्तमान में दवाओं की संख्या में बेतहासा वृद्धि हो रही है। हर रोज नयी दवा बाजार में आ रही हैं। 1990 के बाद अब तक दवाओं की संख्या में 1200 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गयी है। चूंकि फार्मासिस्ट को दवाओं की सटीक एवं सुरक्षित नुस्खों के ज्ञान की आवश्यकता होती है। प्रतिदिन नयी दवाओं के बाजार में आने के कारण उन दवाओं की पूर्ण जानकारी जुटाने में अत्यधिक मेहनत की आवश्यकता होती है। जिसके कारण फार्मासिस्ट व्यस्ततम जीवन व्यतीत कर रहा है। उत्तराखण्ड के अस्पतालों में कार्य कर रहे फार्मासिस्टों के पास मुख्य चुनौती कम पदों का सृजन है। उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति के अनुसार कम संख्या की बैडों के अस्पताल हैं और फार्मासिस्टों के पद बैडों की संख्या पर आधारित हैं। जबकि फार्मासिस्ट ओ०पी०डी० मरीजों को औषधियों एवं अन्य चिकित्सकीय सुविधायें उपलब्ध कराता है। बड़े चिकित्सालय में एक फार्मासिस्ट को 06 घंटे की ओ०पी०डी० में 250 से 300 मरीजों को औषधियां प्रदान की जाती हैं। जबकि औषधियों के रखरखाव का रिकार्ड रखने के साथ-साथ चिकित्सक का नुस्खे का अवलोकन कर समझना होता है। मरीज की दवा व खुराक का निर्धारण करना होता है। मरीज को औषधियों का इस्तेमाल एवं प्रतिकूल प्रभाव समझाने होते हैं। ड्रग इंट्रेक्शन का ध्यान रखना होता है। इस प्रकार एक मरीज के लिए 05 मिनट का समय आवश्यक होता है। जिससे उसके पास मात्र 50-60 मरीजों को औषधियां डिस्पेंसिंग करने का समय होता है। इसके साथ-साथ आपदा, वी०वी०आई०पी०, खेल, मेला, परीक्षा आदि ड्यूटीज का निर्वहन भी करना पड़ता है।

कहा कि उत्तरखंड में उपकेन्द्रों में फार्मासिस्ट के पद समाप्त कर दिए गए हैं एवं उपकेन्द्रों को आयुष्मान आरोग्य केन्द्र बनाकर गैर फार्मासिस्टों से औषधियों का वितरण कराया जा रहा है। जो फार्मेसी-एक्ट 1948 का उल्लंघन है। इससे फार्मासिस्टों को अपने अस्तित्व पर खतरा महसूस हो रहा है। जिससे फार्मासिस्टों पर बेरोजगारी का संकट पैदा हो गया है। उत्तराखण्ड में हर साल दो से ढाई हजार नए फार्मासिस्टों का पंजीकरण हो रहा है। नौकरी ना मिलने के कारण अधिकांश फार्मासिस्ट बेरोजगार हैं। इस अवसर पर वक्ताओं ने वैश्विक स्तर पर फार्मेसी व्यवसाय में होली विभिन्न बदलाव एवं वर्तमान में फार्मासिस्टों की चुनौतियां पर प्रकाश डाला। गोष्ठी के बाद फार्मासिस्टों ने जिला चिकित्सालय में भर्ती मरीजों को फल वितरित भी किये।

गोष्ठी में संगठन के जनपद उपाध्यक्ष मनोज कुमार पुनेठा, संप्रेक्षक तान सिंह, प्रमोद कुमार पांडे, मनोज कुमार टम्टा, गिरीश खर्कवाल, संजय वर्मा, प्रेम टम्टा, पल्लवी कुंवर, बबीता बिष्ट, वेद प्रकाश, गौतम, नीलम खडायत, संगीता, अक्षत, रंजन, हर्षवर्धन प्रहरी, आरती गोस्वामी, रेनू जोशी, मानसी गोस्वामी, किरण पांडे, शोभा चौहान, दीक्षा चौधरी आदि मौजूद रहीं।