प्रगति मैदान के पुस्तक मेले में कुमाउंनी साहित्य की दमदार दस्तक
दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले ने पहली बार पर्याप्त मात्रा में कुमाउँनी भाषा के साहित्य को उपलब्ध कराया गया है। उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल की खुशबू का अहसास कराता यह साहित्य मुख्य रूप से समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून के हाल नंबर 2 में स्टाल नम्बर 385 में उपलब्ध है। जहां मेले में आने वाले पुस्तक प्रेमियों को यह अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। एनसीआर क्षेत्र में निवास करने वाले कुमाउंनी लोगों में इस साहित्य का खासा क्रेज देखा जा रहा है। समय साक्ष्य प्रकाशन के व्यवस्थापक प्रवीण कुमार भट्ट के अनुसार कोरोन काल में पुस्तक मेला नहीं हुआ। इस बार जब मेले की तैयारी होने लगी तो हम सबने तब ही तय कर लिया कि इस बार उत्तराखंडी लोकभाषाओं की पुस्तकों की बिक्री पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। हमने अपने स्टाल में पर्याप्त कुमाउँनी साहित्य रखा हुआ है। विशेष रूप से कुमाउँनी के वरिष्ठ साहित्यकार साहित्य अकादमी से सम्मानित मथुरादत्त मठपाल द्वारा संपादित “कौ सुआ, काथ कौ” काफी पसंद की जा रही हैं।
इस पुस्तक में कुमाउंनी कथा साहित्यकारों का 80 साल का कथा साहित्य सिमटा हुआ है। इसी प्रकार मथुरादत्त मठपाल द्वारा संपादित सौ कुमाउँनी कवियों की पुस्तक “एगे बसन्त बहार” है। प्रसिद्ध लोककथाकार डॉ. प्रयाग जोशी की पुस्तक *कुमाऊं की लोककथाएं व वनराजियों की खोज में” भी उपलब्ध है। इसके साथ ही कुमाऊंनी की त्रैमासिक पत्रिका दुदबोलि के सभी अंक भी बुक स्टाल पर उपलब्ध हैं। इन अंकों में दो हजार पेज से अधिक का समृद्ध कुमाउंनी साहित्य उपलब्ध है।
कुमाऊंनी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार शेर सिंह बिष्ट अनपढ़, हीरा सिंह राणा, गोपाल भट्ट की कुमाऊंनी कविताओं का हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है। “आँग आँग चिचेल है गो, पे मैँ क्यापक क्याप के भेटनु” जैसे कुमाउंनी कविता संग्रह भी इस स्टाल पर उपलब्ध हैं। हेम पन्त द्वारा संपादित उत्तराखण्ड के बालगीतों की पुस्तक “घुघुति बासूति” तो बिक्री में रिकार्ड कायम किये हुए है। शिवदत्त पेटशाली द्वारा संकलित कुमाउँनी खड़ी होली संग्रह “गोरी, प्यारो लगे तेरो झनकारो” भी पुस्तक प्रेमियों द्वारा पसंद किया जा रहा है। पुस्तक मेला 5 मार्च तक चलेगा।
दुदबोलि अब दिल्ली से होगी प्रकाशित
कुमाऊंनी साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल द्वारा निकाली जाने वाली त्रैमासिक कुमाऊंनी की प्रमुख पत्रिका “दुदबोलि” अब दिल्ली से लगातार प्रकाशित की जाएगी। पहले यह पत्रिका रामनगर से प्रकाशित की जाती थी, परंतु करीब डेढ़ वर्ष पूर्व मठपाल जी के हुए निधन के बाद से यह पत्रिका प्रकाशित नहीं हो पा रही थी। कुमाउंनी भाषा की प्रतिनिधि इस पत्रिका को अब दिल्ली से द्विमासिक कुमाउँनी पत्रिका के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। दिल्ली से अब इसका अंक मठपाल जी की दूसरी पुण्य तिथि 9 मई को निकाला जाएगा। यह फैसला समय साक्ष्य प्रकाशन के स्टाल में हुई कुमाउंनी भाषा साहित्य और सांस्कृतिक समिति दिल्ली की बैठक में लिया गया। यहां तय हुआ कि कुमाउंनी भाषा में प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका में मठपाल जी की भावना के अनुरूप कुमाउंनी के अलावा गढ़वाली, जौनसारी और नेपाली भाषा एवं साहित्य की विषयवस्तु को भी शामिल किया जाएगा। उत्तराखंड के साहित्य, इतिहास, संगीत, कला, रंगमंच, सिनेमा आदि विषयों को भी इसमें शामिल किया जायेगा। मई, 2023 के अंक को वार्षिकी के रूप में प्रकाशित किया जायेगा। फिर इसे द्विमासिक कुमाऊंनी पत्रिका के रूप में नियमित रूप निकाला जाएगा। इस मौके पर समिति के अध्यक्ष डॉ. मनोज उप्रेती, महासचिव सुरेंद्र रावत, चारु तिवारी, नवेन्दु मठपाल, राजू पांडे, सुरेंद्र हालसी, हरीश शर्मा, बीडी बिष्ट, पुरुषोत्तम शर्मा, विजयलक्ष्मी शर्मा मौजूद रहे।