एक पराक्रमी महिला थीं ‘तीलू रौतेली’

उत्तराखंड में सत्रहवीं शताब्दी में तीलू रौतेली नामक वीरांगना ने 15 वर्ष की आयु में दुश्मनों के साथ 7 वर्ष तक युद्धकर 13 गढ़ों पर विजय पाई थी। वह अंत में अपने प्राणों की आहुति देकर वीरगति को प्राप्त हो गई थीं। 15 से 20 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरांगना हैं। तीलू रौतेली उर्फ तिलोत्तमा देवी भारत की रानी लक्ष्मीबाई, चांद बीबी, झलकारी बाई, बेगम हजरत महल के समान ही देश विदेश में ख्याति प्राप्त हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड सरकार ने तीलू देवी के नाम पर एक योजना शुरू की है। जिसका नाम तीलू रौतेली पेंशन योजना है। यह योजना उन महिलाओं को समर्पित है, जो कृषि कार्य करते हुए विकलांग हो चुकी हैं। इस योजना का लाभ उत्तराखंड राज्य की बहुत सी महिलायें उठा रहीं हैं।

राज्यों के प्रमुख सभासद में से थे तीलू रौतेली के पिता गोरला रावत
तीलू रौतेली के पिता का नाम गोरला रावत भूपसिंह था, जो गढ़वाल नरेश राज्य के प्रमुख सभासदों में से थे। गोरला रावत गढ़वाल के परमार राजपुतों की एक शाखा है जो संवत्ती 817 ( सन् 760) मे गुजर देश (वर्तमान गुजरात राज्य) से गढ़वाल के पौडी जिले के चांदकोट क्षेत्र के गुरार गांव (वर्तमान गुराड गांव) मे गढ़वाल के परमार शासकों की शरण मे आयी। इसी गांव के नाम से ये कालांतर मे यह परमारो की शाखा गुरला अथवा गोरला नाम से प्रवंचित हुई। रावत केवल इनकी उपाधी है। इन परमारो को गढ राज्य की पूर्वी व दक्षिण सीमा के किलो की जिम्मेदारी दी गयी। चांदकोट गढ, गुजडूगढी आदि की किले इनके अधीनस्थ थे। तीलू के दोनो भाईयो को कत्युरी सेना के सरदार को हराकर सिर काटकर गढ़ नरेश को प्रस्तुत करने पर 42-42 गांव की जागीर दी गयी। युद्ध मे इन दोनो भाईयों (भगतु एवं पत्वा ) के 42-42 घाव आये थे। पत्वा (फतह सिंह ) ने अपना मुख्यालय गांव परसोली या पडसोली(पट्टी गुजडू ) मे स्थापित किया जहां वर्तमान मे उसके वंशज रह रहे है। भगतु (भगत सिंह ) के वंशज गांव सिसई(पट्टी खाटली )मे वर्तमान मे रह रहे है। तीलू रौतेली ने अपने बचपन का अधिकांश समय बीरोंखाल के कांडा मल्ला, गांव में बिताया। आज भी हर वर्ष उनके नाम का कौथिग ओर बॉलीबाल मैच का आयोजन कांडा मल्ला में किया जाता है। इस प्रतियोगीता में सभी क्षेत्रवासी भाग लेते है। तीलू रौतेली की सगाई 15 वर्ष की आयु में इडा गाँव (पट्टी मोंदाडस्यु) के सिपाही नेगी भुप्पा सिंह के पुत्र भवानी नेगी के साथ हुई। गढ़वाल मे सिपाही नेगी जाति सुर्यवंशी राजपूत हैं, जो हिमाचल प्रदेश से आकर गढ़वाल में बसे हैं। पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ (वर्तमान कालागढ़ के समीप) को कन्त्यूरों से मुक्त करवाया। उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला। फिर वह अपने सैन्य दल के साथ “सल्ड महादेव” पंहुची और उसे भी शत्रु सेना के चंगुल से मुक्त कराया। चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित कर देने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस आयी। कालिंका खाल में तीलू का शत्रु से घमासान संग्राम हुआ, सराईखेत में कन्त्यूरों को परास्त करके तीलू ने अपने पिता के बलिदान का बदला लिया। इसी जगह पर तीलू की घोड़ी “बिंदुली” भी शत्रु दल के वारों से घायल होकर तीलू का साथ छोड़ गई। शत्रु को पराजय का स्वाद चखाने के बाद जब तीलू रौतेली लौट रही थीं तो जल श्रोत को देखकर उसका मन कुछ विश्राम करने को हुआ। कांडा गाँव के ठीक नीचे पूर्वी नयार नदी में पानी पीते समय उसने अपनी तलवार नीचे रख दी और जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुकी। उधर ही छुपे हुये पराजय से अपमानित रामू रजवार नामक एक कन्त्यूरी सैनिक ने तीलू की तलवार उठाकर उस पर हमला कर दिया। निहत्थी तीलू पर पीछे से छुपकर किया गया यह वार प्राणान्तक साबित हुआ। कहा जाता है कि तीलू ने मरने से पहले अपनी कटार के वार से उस शत्रु सैनिक को यमलोक भेज दिया।
