रिश्वत मामले में दोषी पूर्व कुलसचिव समेत दो लोग बरी, हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटा
नैनीताल हाईकोर्ट ने द्वाराहाट इंजीनियरिंग कॉलेज के पूर्व कुलसचिव समेत दो लोगों को रिश्वत मामले में दोषमुक्त किया
नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए द्वाराहाट इंजीनियरिंग कॉलेज के पूर्व कुलसचिव चंदन कुमार सोनी और ब्रजेश कुमार सिंह भोज को बड़ी राहत देते हुए दोषमुक्त करार दिया है।
न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की एकल पीठ ने अपर जिला न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम नैनीताल अदालत के वर्ष 2017 के आदेश को पलटते हुए दोनों को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल संदेह या अपूर्ण साक्ष्यों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह मामला कुमाऊं इंजीनियरिंग कॉलेज, द्वाराहाट में आपूर्ति कार्य के भुगतान के बदले अवैध रिश्वत मांगने से जुड़ा था।
सतर्कता विभाग (विजिलेंस) द्वारा बिछाए गए जाल और उसके बाद की गई कार्रवाई के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने दोनों को भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश (धारा 120-बी) का दोषी पाया था। सीके सोनी और बृजेश भोज ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष मांग और स्वीकृति के अनिवार्य तत्वों को साबित करने में विफल रहा है।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि चंदन कुमार सोनी के खिलाफ रिश्वत की सीधी मांग का कोई विश्वसनीय सबूत नहीं था। अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि आरोपी के पास भुगतान जारी करने की कोई प्रशासनिक शक्ति नहीं थी। इसके अलावा, अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, जैसे कि फोन कॉल रिकॉर्डिंग, कानून के अनुसार (धारा 65बी) प्रमाणित नहीं थे, जिससे उनकी विश्वसनीयता शून्य हो गई।
दूसरे आरोपी ब्रजेश कुमार सिंह भोज के मामले में, अदालत ने कहा कि केवल रिकवरी (पैसे की बरामदगी) ही दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है। जब तक कि स्वेच्छा से रिश्वत लेने और उससे पहले की मांग साबित न हो जाए। जाल बिछाने वाली टीम के बयानों में विरोधाभास और फिनोफ्थलीन पाउडर के इस्तेमाल से जुड़ी प्रक्रियाओं में खामियों को देखते हुए अदालत ने पूरी कार्रवाई को संदिग्ध माना।
हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि निचली अदालत का फैसला ठोस सबूतों के बजाय अनुमानों पर आधारित था। इन तथ्यों के बाद हाईकोर्ट ने दोनों को ‘संदेह का लाभ’ देते हुए उनकी सजा रद्द कर दी और उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि साजिश का आरोप तब तक नहीं टिक सकता जब तक कि अभियुक्तों के बीच किसी साझा योजना का स्वतंत्र प्रमाण न हो।

