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काली कुमाऊं गुमदेश का हीरा बना रहा लाल मिट्टी से सुंदर और टिकाऊ ईंट

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हीरा वास्तव में हीरा होता है। चाहे वह खदान से निकला हो या हाथ की अंगुलियों में सोने की अंगूठी में जड़ा, हीरा हर जगह अपनी चमक छोड़ जाता है। ऐसा ही एक हीरा काली कुमाऊं चम्पावत के मटियानी गांव का रहने वाला लगभग 30 वर्ष का यह भोला भाला युवक जो बिना किसी राजकीय सहायता के घर पर ही ईंट भट्टे से ज्यादा सुंदर ईंट तैयार कर रहा है। बावजूद इसके इससे भी कमाल की बात तो यह है कि हीरा ने इस ईंट में अपनी पहचान भी लिख छोड़ी है।
मूलत: लोहाघाट विकास खंड के गुमदेश स्थित एक सीमावर्ती गांव मटियानी का रहने वाला यह युवक घर में ही खुद की कारीगरी से एक के बाद एक सुंदर और मजबूत ईंट बनाकर लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल हीरा का लगाव बचपन से ही प्रकृति के साथ रहा है। उसकी यह बात उसकी कारीगरी के साथ देखने को मिलती है। अपने घर पर ही बिना किसी सहायता के ईंट तैयार करने की बात उसके जेहन में कहा से आई यह पूछे जाने पर हीरा का कहना है कि वह तीन बहिन और दो भाई में सबसे छोटा है। बचपन से ही उसके मन में कुछ अलग करने का विचार था। इस बीच लाक डाउन के चलते उसने कुछ हटकर करने की सोची और इसके लिए सबसे मुफीद उसे ईंट बनाकर समय पास करना था। धीरे धीरे यह काम उसे अच्छा लगने लगा और उसने अपने घर के लिए ईंट तैयार करनी शुरू कर दी। हीरा का कहना है कि उसके अपने नये घर के लिए ईंट तैयार होने के बाद इसे वह अन्य लोगों को बेचने के लिए भी तैयार करेगा।
हीरा का कहना है कि वह दो घंटे में 50 से 100 ईंट तैयार कर लेता है। यदि इस युवक को प्रोत्साहन मिले तो आने वाले समय में हीरा गांव में ही भट्टा तैयार कर ईंट का उत्पादन शुरू कर सकता है। काली कुमाऊं के इस हीरे को पहचान कर तराशने वाले एक अदद जौहरी की अब यहां तलाश है।

कम खर्चे मे़ बनाई जा रही टिकाऊ और मजबूत ईंट
हीरा का कहना है कि बहुत कम खर्च में वह ईंट तैयार कर लें रहा है। मिट्टी उसने खेत से ले ली और सांचा घर में तैयार कर लिया और एक छोटी सी भट्टी घर के बाहर आंगन में तैयार कर दी। कम खर्च में किफायती ईंट तैयार करना हीरा का मकसद है।

हीरा ईंट नाम से जानी जाएगी यहां तैयार ईंट
हीरा वास्तव में हीरा है उसका कहना है कि उसने ईंट में अंग्रेजी में H I (एच आई) लिखा है जो उसकी ईंट तैयार करने वाली कंपनी का लोगो होगा। अभी तक तैयार सभी ईंटों में हीरा ने इस लोगो को भी अंकित किया है। (साभार— ललित मोहन गहतोड़ी)

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