साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चेतना मंच ने किया काव्य गोष्ठी का आयोजन, कवियों ने किया हिन्दी पर आधारित कविताओं का पाठ
चम्पावत। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चेतना मंच की रविवार को हुई काव्य गोष्ठी में कवियों ने हिंदी पखवाड़े में कई रंग बिखेरे। कुर्मांचल एंग्लो संस्कृत विद्यालय में आयोजित काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डॉ. कीर्ति बल्लभ सक्टा ने की। संचालन डा.बी.सी.जोशी ने किया। राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता डॉ. भुवन चंद्र जोशी ने- ‘मजदूर की पूजा दो जून रोटी का जुगाड़, पल जाय परिवार कुछ नकद कुछ उधार’।, डॉ.अजय रस्तोगी अविरल ने- ‘हिंदी की सेवा को मिलकर आरंभ एक अभियान करें, दिनचर्या में योजित करके प्रतिदिन इसका रसपान करें।, भूपेंद्र देव ताऊ – ‘ जीवन के हर रंग को इस रंगमंच में दिखा गए, ताउजी तो जीवन के अदाकरी जलवे में अव्वल आ गए। पुष्कर सिंह बोहरा ने – पाया मानव तन अनमोल, बंदे देखो आंखें खोल।, डॉ.तिलकराज जोशी ने – ‘अनुपम अद्भुत शब्द पिरोकर, पाती कोई भेज रहा’। डॉ.सतीश चंद्र पांडेय ने – ‘नजरों में मुहब्बत और वाणी में मधुरिमा चाहिए, इंसान ने इंसानियत को पास रखना चाहिए’। सुभाष जोशी ने ‘सींची माटी बलिदानों से, उत्सर्ग किया प्राणों का। गाथा गाता है कण कण, अपने अंदर शहीदों का’ कविता का पाठ किया।
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डॉॅ. विष्णुदत्त भट्ट सरल ने- ‘विश्व पटल पर हिंदी ने पहचान बनायी, अपने गुण-गौरव की मधुमय ज्योति जलाई, किन्तु राष्ट्रभाषा के पद को अपनी हिन्दी, नहीं स्वदेश में ग्रहण अभी तक है कर पाई’। हिमांशु जोशी ने – ‘अपनी सीमा स्वयं ही हिन्दी ने ली नाप, एक किनारे बैठी है इसलिए चुपचाप। विश्व पटल पर डोल रही अपनी हिन्दी आज, फिर इसको अपनाने में क्यों आती है लाज।। बालकवि संस्कृति ने – ‘देखो चली इठलाती हिंदी, लगकर माथे पर वो बिंदी। घर घर जाकर बोले हिंदी, मैं हूं हिन्दी मैं हूं हिन्दी।। प्रधानाचार्य सामश्रवा आर्य ने -‘जन-जन की भाषा है हिंदी, भारत की आशा है हिंदी। जिसने पूरे देश को जोड़ रखा है, वो मजबूत धागा है हिन्दी।।
काव्य गोष्ठी के दौरान बताया गया कि साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चेतना मंच चम्पावत की ओर से कविताओं की एक संकलित पुस्तक तैयार की गई है। सांझा काव्य संकलन के प्रकाशन को कुष्ण कुमार ’बेदिल’ के दिशा निर्देशन में प्रयास चल रहा है। बताया गया कि यह प्रकाशन डॉ.अजय रस्तोगी ‘अविरल’ की पहल पर संभव हो सका है। गोष्ठी के दौरान दोनों का आभार जताया गया। गोष्ठी में पुस्तक के विमोचन को लेकर भी चर्चा हुई। विमोचन के प्रायोजक डॉ.शरत चंद्र जोशी होंगे। पुस्तक के नाम के चयन में डॉ.तिलकराज जोशी की अहम भूमिका रही। पुस्तक का नाम ‘हिमगिरी की निर्झरिणी’ रखा गया है।



