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पंचायत चुनाव : चांदी की जूती की मार से बड़े बड़े हो गए सरेंडरडील पक्की, फोन स्वीच आफ

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वोटरों का आभार जताने के बजाए होटल-रिर्जोटो में काट रहे मस्ती, उत्तराखंड के अधिकांश जिला और क्षेत्र पंचायत सदस्यों के ये है हाल

(दिनेश चंद्र पांडेय पत्रकार)

चम्पावत (उत्तराखंड)। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सपना था गांवों में स्वराज आए जनता के नुमांइंदे गांव की सरकार चलाएं। पंचायत राज व्यवस्था के तहत इस परिकल्पना को साकार करने के तमाम प्रयास हुए। संविधान में संशोधन की बदौलत पंचायतों को और अधिक स्वायत्तता दिए जाने का कदम उठाया गया और देश के कई राज्यों में पंचायतों मजबूती के साथ विकास में अहम योगदान दे रही है। एक हफ्ता पूर्व उत्तराखंड के बारह जनपदों में भी गांव की सरकार के नुमाइंदे चुने गए। अब जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गयी है। जिला और क्षेत्र पंचायत के जिन नवनिर्वाचित सदस्यों को इस बीच जनता का आभार जताने के लिए पहुंचना चाहिए था उनमें से अधिकांश सदस्य होटल और रिजोर्टों में मस्ती काट रहे है।

चांदी की जूती की मार से बड़े बड़े सूरमाओं को सरेंडर करवा दिया है। डील पक्की हो चुकी है और फोन भी स्विच आफ है। अब ये चुनाव के बाद ही नजर आने वाले है। इन परिस्थितियों को लेकर जनता के बीच कई तरह की चर्चा ओं का बाजार गर्म है। आम जनता पूछ रही है कि क्या स्वराज का सपना ऐसे ही साकार होगा। ऐसे नुमाइंदे जो अपने जनप्रतिनिधित्व की बुनियाद बिकने और खरीदने से शुरु करेंगे वे जनता का और उनकी समस्याओं के प्रति कितनी ईमानदारी से काम करेंगे। आज जहां भष्ट्राचार के चलते आम जनता परेशान है क्या ये प्रतिनिधि उस भष्ट्र व्यवस्था से लड़ पाएंगे। विकास के नाम जनता का भला होगा या ये केवल योजनाओं की बंदरबांट करेंगे।

दूसरा सबसे बड़ा सवाल सत्ता और विपक्षी पार्टियां के बीच चल रहा है कि अब इन चुनावों में पार्टी की निष्ठा रखने वालोँ की जगह धनबल वालों को आगे किया जा रहा है। भले ही वह् आयाराम गयाराम ही क्यों न हो। पार्टी स्तर पर झंडा डंडा लगाने वाले और सालों से पार्टी के प्रति समर्पण का भाव रखने वाले हासिये पर है। इससे भविष्य में पार्टियां के प्रति कार्यकर्ता की निष्ठा डगमगाने लगेगी और जहां मिले मौका वहीं लगाओ चौका का भाव ज्यादा मजबूत होगा।

बहरहाल उत्तराखंड में चल रहे इन हालातों से यह नही लगाता कि गांव की सरकारों में सुचिता, ईमानदारी, गुणवत्ता युक्त विकास और वहां की जनोन्मुखी सुविधाओं को बढावा देने की बात होगी। बस केवल इतना भर होगा कि निकायों की तरह त्रिस्तरीय पंचायतें भी बस लूट खसोट का अड्डा बन कर रह जाएंगी। कहा गया है कि जब गैरत पहले ही बिक चुकी हो तो वहां फिर बेगैरती ही पांव पसारेगी। ऐसा नहीं है कि यह गिरावट चुने गए सदस्यों में ही आई हो। हमारा वोटर भी इस गिरावट की गिरफ्त में है। शराब और पैसे के लालच में वोट का सौदा होना अब आम बात है हांलाकि आज भी ईमानदार और ऐसे वोटर है जिन्होंने बिना किसी लालच के अपने मत का इस्तेमाल किया होगा। लेकिन इनकी संख्या कम है। इन हालातों से यह साफ है कि अब पंचायतों में भी संधर्षशील जझारू और जज्बा रखने वाले और आर्थिक रुप से कमजोर नेताओ को जनता भी कम ही पंसद कर रही है जो ऐसे लोगों के साथ ही उन्नतशील समाज के लिए चिंता का विषय है।

दलाली में भी मिली मलाई …

जिलापंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख के दावेदारों को सदस्यों की सेंटिग गेंटिंग कराने में कई जिलों में दलालों का भी सहारा लेना पड रहा है और वे दलाल दलों मे पकड़ रखने वाले रसूखदार सहित सदस्य के नाते रिश्तेदार, जान पहचान के भी है जो डीलिंग में अहम रोल अदा कर अपना हिस्सा भी फिक्स करा रहे है।

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