चंपावतटनकपुर

पहाड़ की महान विरासत जल मंदिरों को बचाने के लिए जनांदोलन की जरूरत, नौले धारों को बचाने की मुहिम में जुटा ‘नौला फाउंडेशन’

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टनकपुर। पहाड़ की पानी परम्परा व हिमालयी जल सुरक्षा के लिए महान जल संस्कृति की विरासत जल मंदिर ‘नौला’ व धारों के संरक्षण संवर्धन को नौला फाउंडेशन लगातार प्रयासरत है। फाउंडेशन ने स्थानीय समुदायों के साथ परस्पर जनसहभागिता से विश्व विरासत दिवस 18 अप्रैल को एतिहासिक नौलो धारों के आसपास जल संवर्धन व संरक्षण कार्यक्रम के साथ साथ स्कूली छात्रों व ग्रामीणों ने मिलकर नौला धारा साफ सफाई अभियान चलाया। कहा गया कि परंपरागत नौले धारे बचेंगे तो जल सरंक्षण के साथ हमारी पारम्परिक पहाड़ी संस्कृति व सभ्यता भी बचेगी।


सूखीढांग में आयोजित कार्यक्रम में फाउंडेशन के जिला संयोजक सौरभ कलखुड़िया ने कहा कि भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन का कृषि पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। जैसा की हम सभी जानते हैं की आज हमारे परम्परागत जल स्रोत नौले धारे सूखते जा रहे हैं और पानी की भयंकर कमी भी पहाड़ से पलायन होने की एक वजह है। क्यों न हम सब मिलकर नई दिशा नई सोच के साथ हम मिलकर एक आगे बढें और अपने अपने गांव व् आसपास के सभी प्राकृतिक जल स्रोतों को बचने के लिए नौला फाउंडेशन की मुहीम के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलें। सरकारी योजनाओं के माध्यम से भूमिगत जल का दोहन कर, जल स्रोतों को बाधित कर या नदियों के प्रवाह को बांधों से रोक कर बड़ी बड़ी टंकियों में एकत्र कर घर घर तक पहुंचाने का काम शुरू हुआ। जरूरत के मुताबिक पानी जब घर पर ही उपलब्ध होने लगा तो नौलों की उपेक्षा होने लगी और हमारे पुरखों की धरोहर क्षीण-शीर्ण होकर विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई। कभी पहाड़ की पेयजल स्रोत के अलावा परंपरागत संस्कृति व संस्कार की जगह ये प्राचीन नौले धारे का उत्तराखण्ड में संसाधन उपयोग और संरक्षण में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संवेदनशीलता इत्यादि का पूरा ध्यान रखा जाता रहा है। ये धारे-नौले सदैव ही सामूहिकता, सामंजस्यता, सद्भावना और परस्पर सम्मान के वाहक रहे हैं और साथ ही, ग्राम-समाज की जीवनरेखा ये धारे, पंदेरे, मगरे और नौले प्राकृतिक ही रहे हैं। अर्थात, जहां प्राकृतिक रूप से पानी था, वहीं इनका निर्माण किया गया। पर इनका रिचार्ज जोन हमेशा प्राकृतिक ही होता हैं जो सदियों से सामुदायिक जल संचय और उसके संरक्षण और संवर्धन हमेशा प्राकृतिक ही होता था और पहाड़ो की ढालों में बने हुए सीढ़ीदार खेत ही प्राकृतिक चाल खाल का काम करते थे। नौले सिर्फ जल स्रोत ही नहीं बल्कि हमारे जीवन मूल्य हैं, जिन्हें बचाना अति आवश्यक हैं नहीं तो हमें पोषित करती संस्कृति ही खत्म हो जाएगी, यदि हम समय से न जागे।
कहा कि नौला फाउंडेशन का एकमात्र उद्देश्य सामुदायिक सहभागिता से परम्परागत जल सरंक्षण पद्धति को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर पारम्परिक जल स्रोत नौले – धारे को उनका सम्मान वापस दिलाना है, उनकी पहचान वापस दिलाना है और गांव वालों शुद्ध मिनरल पेयजल मुहैया करना है। कार्यक्रम में नरेंद्र जोशी, हरीश जोशी, दीपा जोशी, होशियार सिंह, हरू सिंह, जानकी देवी, उमेश जोशी, ललित मोहन जोशी, तारा देवी, हीरा सिंह आदि उपस्थित रहे।