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कोटद्वार में मूल निवास स्वाभिमान महारैली, लोग बोले- पूरे पहाड़ में जाएगा आंदोलन का संदेश, पहाड़ का वजूद, स्वाभिमान, संस्कृति और संसाधन बचाने की है यह लड़ाई

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कोटद्वार में मूल निवास और सख्त भू कानून बनाने की मांग को लेकर के रैली महारैली निकाली गई। देवी रोड के तड़ियाल चौक, देवी मंदिर, मोटर नगर होते हुए रैली लाल बत्ती चौक बदरीनाथ मार्ग से कोटद्वार तहसील तक रैली निकाली गई। इस दौरान हल्द्वानी में हुई घटना को लेकर ‘मूल निवास‘ भू. कानून समन्वय संघर्ष समिति ने राज्य सरकार पर निशाना साधा। समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि अगर प्रदेश में मूल निवास और मजबूत भू-कानून लागू होता तो इस तरह की अप्रिय घटना नहीं होती। उन्होंने हल्द्वानी की घटना की कड़ी भर्त्सना करते हुए कहा कि देवभूमि की पहचान शांति की रही है।

कोटद्वार से मूल निवास स्वाभिमान आंदोलन का शंखनाद
मोहित डिमरी ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जिन बाहरी तत्वों को प्रदेश की शांति के लिए खतरा बताते हैं और जिनके खिलाफ सख्त एक्शन लेने की बात करते हैं, उन बाहरी तत्वों की पहचान वह कैसे करेंगे। उन्होंने कहा कि मूल निवास और मजबूत भूमि कानून किसी भी बाहरी तत्व के खिलाफ सबसे असरदार हथियार है। उन्होंने कहा कि गढ़वाल मंडल के द्वार कोटद्वार से मूल निवास स्वाभिमान आंदोलन का शंखनाद होने जा रहा है। यह धरती क्रांतिकारियों की धरती है। यहां से इस आंदोलन का संदेश पूरे पहाड़ में जाएगा और एक नई क्रांति की शुरूआत होगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में न केवल हल्द्वानी बल्कि तमाम दूसरे इलाकों में भी अवैध अतिक्रमण मौजूद हैं, जिनके खिलाफ सरकार बुलडोजर चलाने की बात कहती है, लेकिन असल समाधान बुलडोजर नहीं बल्कि मजबूत भू.कानून है। समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि सरकार को चाहिए कि प्रदेश में मजबूत भू.कानून सख्ती से लागू कर समस्त भूमि का ब्यौरा जुटाए और उसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाए।

समन्वय समिति के सदस्य पार्षद परवेंद्र सिंह रावत, पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष रमेश भंडारी ने कहा कि सरकार पहाड़ के लोगों के साथ भेदभाव कर रही है। अतिक्रमण के बहाने पहाड़ी क्षेत्रों में कई लोगों की दुकानें और मकान तोड़े गए, वहीं अवैध बस्तियों को हटाने के बजाय उन्हें राहत देते हुए रातों.रात अध्यादेश लाया गया। सरकार के दोहरे चरित्र को जनता समझने लगी है। उत्तराखंड के लोग अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। अभी नहीं लड़े तो आने वाले समय में मूल निवासियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। यह लड़ाई पहाड़ का वजूद, स्वाभिमान, संस्कृति और संसाधन बचाने की लड़ाई है।

वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड की अस्मिता तभी बचेगी, जब मूल निवास और मजबूत भू कानून लागू होगा। डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद मूल निवास 1950 लागू न होना भाजपा सरकार को सवालों के घेरे में लाती है। कहा कि सरकार जनता की हितैषी है तो विधानसभा में मूल निवास 1950 का विधेयक पारित करे। मूल निवास न होना सभी समस्याओं की जड़ है। आज बाहर के लोग हमारे संसाधनों को लूट रहे हैं। इसके लिए राष्ट्रीय दलों की नीतियां जिम्मेदार हैं।