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UKSSSC : पूर्व सीएम हरीश रावत ने भर्ती घोटाले की बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले से की तुलना

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उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में भर्ती घोटाले की जांच को लेकर सियासत गरमा उठी है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भर्ती घोटाले की तुलना बहुचर्चित पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले से की है। उन्होंने लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों को लेकर कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि बंगाल के इतिहास को उत्तराखंड में दोहराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भर्ती करने वाली संस्थाओं को जब तक स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दिया जाएगा और उसमें निष्पक्ष लोगों को नियुक्त नहीं करेंगे तब तक परिणाम वही होगा जो आज हो रहा है। उन्होंने दावा किया कि उनके कार्यकाल में सर्वाधिक नियुक्तियां हुईं और आयोगों को सर्वाधिक अधियाचन गए। एक मामले में गड़बड़ी हुई तो आयोग के अध्यक्ष को हटा दिया गया। आज ऐसा करने वाले लोगों का पोषण किया जा रहा है। नियुक्तियों के नाम पर पैसा कमा रहे हैं। रावत ने कहा कि नौकरियां देते वक्त जिन नौजवानों को कुछ देना पड़ेगाए वे जितने साल राजकीय सेवा में रहेंगेए उत्तराखंड को उधेड़ते रहेंगे। वो हमेशा यह अपेक्षा करेंगे कि उन्हें भी कुछ दिया जाए। रावत ने कहा कि एंट्री प्वाइंट यानी भर्ती के समय मेरिट से कोई समझौता नहीं होना चाहिए।

धरना देने की क्या जरूरत, फोन कर सकते हैं: धामी
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की मुख्यमंत्री आवास के बाहर धरना देने की धमकी पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि हरीश रावत वरिष्ठ नेता हैं। उन्हें धरना देने की क्या जरूरत है। वह तो उन्हें फोन कर सकते हैं।

तिरंगे को लेकर सरकार के निर्णय से हरीश रावत नाराज
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सरकार के उस निर्णय पर विरोध दर्ज कराया हैए जिसमें कहा गया है कि तिरंगा झंडा अब हैंडस्पिन खादी का होना आवश्यक नहीं है। अपनी एक फेसबुक पोस्ट में हरीश रावत ने लिखा है कि कांग्रेस 9 अगस्त से 15 अगस्त तक पूरे देश में तिरंगा यात्रा निकाल रही है। सरकार ने भी हर घर पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया है। दोनों निर्णय स्वागत योग्य हैं। लेकिन सरकार ने दो और ऐसे निर्णय लिए हैंए जिस पर पुनर्विचार करना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज हैंडस्पिनए हाथ से काती गई खादी से बनता है। इसके साथ एक इतिहास और भविष्य के लिए रोजगार आधारित स्वावलंबन की सीख है। सरकार ने कह दिया है कि अब हैंडस्पिन खादी का झंडा आवश्यक नहीं है। उन्होंने कहा कि इस निर्णय के विरुद्ध आवाज उठनी चाहिए। दूसरा निर्णय अब झंडा फहराने के लिए किसी समारोह की आवश्यकता नहीं है। जबकि झंडा फहराने और उतारने की एक निर्धारित प्रक्रिया होती है। उन्होंने कहा कि जब वह कावड़ यात्रा के दौरान लहराते हुए तिरंगे को देखते हैंए तो उन्हें खुशी होती हैए लेकिन जब यही झंडा कहीं सड़क पर कीचड़ में सना होता है तो दुख भी होता है। उन्होंने कहा कि ध्यान देना होगा कि कहीं सरकार के इस निर्णय से राष्ट्रध्वज की महत्ता कम न हो।

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