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उत्तराखंड : विभागों के तहत छोटे अपराधों में कारावास नहीं अब सिर्फ भुगतना होगा अर्थदंड

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देहरादून। विभागों के तहत छोटे अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, कानूनों में छोटी तकनीकी और प्रक्रियात्मक खामियों के लिए नागरिक दंड एवं प्रशासनिक कार्रवाई शुरू करने, कानूनों के अप्रचलित एवं अनावश्यक प्रावधानों को हटाये जाने को लेकर राज्य सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है। दरअसल, भारत सरकार की ओर से जारी दिशा-निर्देश पर उत्तराखंड जन विश्वास (उपबंधों का संशोधन) अध्यादेश, 2025 को प्रख्यापित करने का निर्णय लिया है। जिसपर बुधवार को हुई धामी मंत्रिमंडल ने मुहर लगा दी है।

नियोजन विभाग ने प्रदेश में कुल 52 अधिनियम चिन्हित किए हैं। जिनमें सजा के प्रावधानों में बदलाव किया जाने हैं। पहले चरण में तमाम विभागों के सात कानूनों में बदलाव किया गया है। जिसके तहत कुछ कानून में जेल की सजा को कम किया गया है तो वहीं, तमाम कानूनों में जेल की सजा को हटा दिया गया है। हालांकि, ये जरूर है कि जुर्माने की राशि में काफी अधिक बढ़ोतरी का प्रावधान किया गया है। इस अध्यादेश में प्रावधान किया गया है कि अर्थदंड की राशि में हर तीन साल में 10 फीसदी की वृद्धि की जाएगी।

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जीवन और व्यापार को आसान बनाने के लिए विश्वास आधारित शासन को और अधिक बढ़ाने के लिए अपराधों को गैर-आपराधिक बनाने और तर्कसंगत बनाने के लिए पहले चरण में सात अधिनियमों में संशोधन करने के लिए अध्यादेश लगाया गया है। उत्तराखंड के राज्यपाल ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 213 के खण्ड (1) में प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, अध्यादेश प्रख्यापित कर दिया है। ऐसे में यह अध्यादेश उत्तराखंड राज्य में लागू हो गया है। ऐसे में इस अध्यादेश का पहले के किसी भी मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

नियोजन विभाग ने 52 अधिनियम को चिन्हित किया है, जिसमें कारागार सजा के प्रावधानों को कम करना या हटाना है। पहले चरण में 7 अधिनियम को उत्तराखंड जन विश्वास (उपबंधों का संशोधन) अध्यादेश में शामिल किया गया है। ऐसे में जिस तरह से अन्य विभागों से बातचीत होगी उसी के आधार पर अन्य अधिनियम को भी इसमें शामिल किया जाएगा। साथ ही कहा कि इसका मकसद यही है कि छोटे अपराधों की सजा अर्थदंड हो कारावास ना हो।
— आर मीनाक्षी सुंदरम, प्रमुख सचिव, नियोजन विभाग

पहले चरण में इन सात कानूनों में किया गया बदलाव

उत्तराखंड नदी घाटी (विकास और प्रबंधन) अधिनियम, 2005 के तहत अब अधिकृत अधिकारी को किसी भूमि या भवन में प्रवेश करने में बाधा डालता है या फिर भूमि या भवन में प्रवेश करने पर उत्पीड़न करता है, तो इस अपराध के लिए पांच हजार रुपये जुर्माना लगेगा। अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए झूठी सूचना देना या नदी घाटी को प्रदूषित करता है तो पहले अपराध के लिए 2 से 10 हजार जुर्माना और बाद के अपराधों के लिए 10 से 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।
उत्तराखंड बाढ़ मैदान जोनिंग अधिनियम, 2012 की धारा 13 में अब पांच हजार रुपये तक का जुर्माना लगेगा। दोष सिद्ध होने के बाद अगर अपराध जारी रहता है तो प्रतिदिन एक हजार रुपये अतिरिक्त जुर्माना लगेगा। बार-बार होने वाले अपराधों या गंभीर पर्यावरणीय अपराधों के लिए 20 हजार रुपये का जुर्माना और दो माह के कारावास का प्रावधान किया गया है। उत्तराखंड प्लास्टिक और अन्य जीव अनाशित कूड़ा-कचरा (उपयोग और निस्तारण का विनियमन) अधिनियम, 2013 की धारा 10 में तीन महीने की जगह एक महीना रखा गया है।
उत्तराखंड राज्य की अवस्थित निकायों मलिन बस्तियों के सुधार, विनियमितीकरण, पुनर्वासन, पुनर्व्यवस्थापन अतिक्रमण एवं निषेध अधिनियम, 2016 की धारा 5 में 6 महीने की जगह 3 महीना रखा गया है।
उत्तराखंड लोक सेवा (आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 2019 का उल्लंघन करने पर 40 हजार रुपए तक का जुर्माना भरना होगा। जबकि पहले तीन महीने का कारावास या 20 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान था।
उत्तराखंड जैविक कृषि अधिनियम, 2019 का उल्लंघन करने पर जुर्माना राशि को 50 हजार से पांच लाख रुपए तक किया गया। यही नहीं, जुर्माने के भुगतान में चूक करने पर रोजाना 1,000 रुपये अतिरिक्त राशि का भुगतान करना होगा।
उत्तराखंड फल पौधशाला (विनियमन) अधिनियम, 2019 का उल्लंघन करने और पहली बार दोष सिद्ध होने पर 50 हजार का जुर्माना और जुर्माना भरने में व्यतिक्रम होने पर 6 माह का कारावास की सजा था। ऐसे में अब कारावास हो हटाकर अर्थदंड को एक लाख से पांच लाख कर दिया है। दूसरी या इसके बाद दोष सिद्ध होने पर 50 हजार का जुर्माना और 6 माह के कारावास की सजा का प्रावधान था। ऐसे में अब कारावास को हटाकर सीधे 10 लाख रुपए का अर्थदंड लगाया गया है।

उत्तराखंड जन विश्वास अध्यादेश के मुख्य बिंदु

छोटे / विनियामक/प्रासंगिक अपराधों के लिए कारावास को मौद्रिक दंड (Monetary penalty) से प्रतिस्थापित किया गया है। जहां निवारण की आवश्यकता थी, वहा दंड बढ़ाए गए या आनुपातिकता सुनिश्चित करने के लिए पुनर्गठित किए गए।
स्वतः संशोधनः निवारक मूल्य बनाए रखने के लिए सभी जुर्माने/दंड हर तीन साल में 10 प्रतिशत बढ़ाए जाएंगे। प्रशासनिक/सुधारात्मक कार्रवाई पर जोर (यानि अनिवार्य उत्पाद वापसी, अनुपालन का शपथ पत्र)। गंभीर या बार-बार किए गए अपराधों के लिए अभी भी कारावास हो सकता है, लेकिन सख्त सीमाओं के भीतर।