उत्तराखंड # सीएम तीरथ सिंह रावत ने देर रात सौंपा इस्तीफा, प्रदेश को आज मिलेगा 11वां मुख्यमंत्री
उत्तराखंड में चार महीने के अंदर ही सरकार को नया नेतृत्व मिलने जा रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देशों के बाद सीएम तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार देर रात राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफा सौंप दिया। इससे पहले दिल्ली में तीरथ ने संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए खुद पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे पत्र में पद छोड़ने की इच्छा जताई थी। मुख्यमंत्री रावत को बुधवार को अचानक दिल्ली तलब किए जाने के बाद से ही सियासी कयासबाजी जोरों पर थी। बुधवार देर रात ही उनकी मुलाकात नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह से हुई थी। गुरुवार को उन्हें देहरादून लौटने से रोक दिया गया था। मसला रावत के उपचुनाव को लेकर अटका हुआ था, जिनके आयोजन में जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम बचे होने की बाधा थी। शुक्रवार को रावत दोबारा नड्डा से मिले। इस आधे घंटे की मुलाकात में उन्हें संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए इस्तीफा देने का निर्देश दिया गया। इसके बाद तीरथ रावत ने नड्डा को पत्र लिख कर इस्तीफे का प्रस्ताव रखा। फिर दून लौटे तीरथ सिंह रावत ने प्रेस वार्ता की, लेकिन उसमें महज अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाकर चले गए। मीडियाकर्मियों के इस्तीफे के बारे में पूछने पर उन्होंने चुप्पी साध ली। फिर रात करीब सवा ग्यारह बजे वो राजभवन पहुंचे और राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफा सौंप दिया। उन्होंने कहा कि संवैधानिक संकट को देखते हुए मुझे लगा कि मेरे लिए इस्तीफा देना सही है। मैं केंद्रीय नेतृत्व और पीएम मोदी का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे सीएम बनने का मौका दिया था।
उत्तराखंड को अलग राज्य के रूप में वजूद में आए अभी 21 साल भी पूरे नहीं हुए और अब इसे मिलने जा रहा है 11वां मुख्यमंत्री। छोटे राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता की मिसाल बन चुके उत्तराखंड में भाजपा के लगभग 11 साल के शासन के दौरान सात मुख्यमंत्री बने। फिलहाल विपक्ष में बैठी कांग्रेस 10 साल सत्ता में रही और उसने तीन नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया है। नौ नवंबर 2000 को देश के 27वें राज्य के रूप में पैदाइश हुई थी उत्तराखंड की। तब पहली अंतरिम सरकार बनाने का मौका मिला भाजपा को और पहले मुख्यमंत्री बने नित्यानंद स्वामी। कुछ ही महीनों में भाजपा में स्वामी की मुखालफत शुरू हो गई। अंतत: एक साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही अक्टूबर 2001 में स्वामी की विदाई हो गई और उनके उत्तराधिकारी बने भगत सिंह कोश्यारी। कोश्यारी को लगभग चार महीने का ही कार्यकाल मिला, क्योंकि वर्ष 2002 की शुरुआत में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता से बेदखल हो गई।
कांग्रेस के सत्ता में आने पर नारायण दत्त तिवारी राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री बने। तिवारी अब तक अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में फिर भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। भाजपा ने तत्कालीन सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया मगर सवा दो साल बाद जून 2009 में खंडूड़ी को हटा मुख्यमंत्री के रूप में रमेश पोखरियाल निशंक की ताजपोशी कर दी गई। निशंक को भी लगभग सवा दो साल ही इस पद पर रहने का मौका मिला और सितंबर 2011 में फिर खंडूड़ी को दोबारा भाजपा ने सरकार की कमान सौंप दी।
वर्ष 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। कांग्रेस ने भी विधायक के बजाय एक सांसद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया। बहुगुणा मार्च 2012 से जनवरी 2014 तक कुर्सी पर रहे। कांग्रेस में अंदरूनी कलह के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा और हरीश रावत फरवरी 2014 में मुख्यमंत्री बन गए। वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता से विदाई हुई और फिर अवसर मिला भाजपा को। इस बार भाजपा ने विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत को मार्च 2017 में मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी। चार साल का कार्यकाल पूरा करने से कुछ ही दिन पहले नौ मार्च 2021 को त्रिवेंद्र को अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री पद गंवाना पड़ा। 10 मार्च को तीरथ सिंह रावत राज्य के 10वें मुख्यमंत्री बने और महज 114 दिन में उनकी विदाई की पटकथा लिख दी गई।