उत्तराखंड # डॉक्टर मुझे प्रताड़ित करते थे, ये लिख कर 108 के चालक ने फांसी लगाकर जान दी
देहरादून। प्रेमनगर स्थित सरकारी अस्पताल परिसर में एंबुलेंस सेवा 108 के चालक ने फांसी लगाकर जान दे दी। वह यहां संविदा पर तैनात था। कुछ दिन पहले ही उसकी संविदा अवधि समाप्त हो चुकी थी। पुलिस को उसके पास एक सुसाइड नोट भी मिला है, जिसमें उसने अस्पताल के एक अधिकारी (डॉक्टर) पर प्रताड़ना का आरोप लगाया है। सुसाइड नोट में प्रताड़ना का कारण और तरीका साफ नहीं हुआ है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
एसओ प्रेमनगर कुलदीप पंत ने बताया है कि बुधवार सुबह सरकारी अस्पताल परिसर में किसी के आत्महत्या करने की सूचना मिली थी। पुलिस मौके पर पहुंची तो देखा कि वहां एंबुलेंस चालक यशवंत सिंह गुसाईं के आवास के बाहर भीड़ लगी थी। अंदर देखा तो यशवंत सिंह गुसाईं छत के पंखे के सहारे फंदे पर लटक रहा था। उसे नीचे उतारकर पुलिस ने अस्पताल पहुंचाया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। एसओ ने बताया है कि गुसाईं की संविदा अवधि समाप्त हो चुकी थी। वह यहां सरकारी आवास में अपनी पत्नी व एक साल के बच्चे के साथ रहता था। बुधवार सुबह सात बजे उसकी पत्नी बच्चे को घुमाने के लिए पार्क में गई थी। कुछ देर बाद वापस आई तो देखा कि यशवंत ने फंदे पर लटका हुआ था। वह मूलरूप से ग्राम रखूण, पोस्ट महेशगांव, पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला था। उसके पास से सुसाइड नोट भी मिला है, जिसमें उसने अपनी मौत का जिम्मेदार अस्पताल के एक अधिकारी को बताया है। नोट में लिखा है कि वह अपने पूरे होश में फांसी लगा रहा है। उसे अधिकारी (डॉक्टर) बार-बार प्रताड़ित कर रहा है। उसकी मृत्यु के लिए घरवाले जिम्मेदार नहीं हैं। वह बेहद परेशान हो गया और यह कदम उठा लिया। हालांकि, इस सुसाइड नोट से यह साफ नहीं हुआ है कि डॉक्टर उसे किस तरह प्रताड़ित कर रहा था। प्रताड़ना किस बात को आधार मानकर की जा रही थी, यह भी स्पष्ट नहीं है। पुलिस ने सुसाइड नोट सील कर दिया है, जिसे जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजा जाएगा। बताया जा रहा है कि आठ माह से उसे वेतन नहीं मिला था।
वहीं राजकीय संयुक्त चिकित्सालय के सीएमएस डॉ.राजेश कुमार अहलुवालिया ने कहा है कि जो शासकीय कार्रवाई थीं, उन्हें अमल में लाया जा रहा था। यशवंत सिंह गुसाईं ने लॉगबुक प्रस्तुत नहीं की थी। पिछले दिनों ऑडिट टीम भी आई। टीम के सामने भी वह उपस्थित नहीं हुआ। लगातार एंबुलेंस में डीजल डलवाया जा रहा था, लेकिन इसका कोई हिसाब वह नहीं दे रहा था। यही नहीं वह पीआरडी से था, उसने आवास लेते समय शपथपत्र दिया था कि वह इसका किराया स्वयं जमा करेगा, मगर उसने किराया जमा नहीं किया, जिसके 62 हजार रुपये उस पर बकाया थे। सीएमओ और उच्चाधिकारियों ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश भी दिए थे। इन्हीं बातों को उससे समय-समय पर कहा जाता था।
