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उत्तराखंड : एम्स में बेड न मिलने से नवजात ने रास्ते में तोड़ा दम, डेढ़ घंटा गिड़गिड़ाते रहे परिजन

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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में गंभीर संक्रमण से पीड़ित 12 दिन के नवजात को उपचार के लिए लाया गया, लेकिन इमरजेंसी में तैनात चिकित्सक के आगे माता पिता के डेढ़ घंटे तक गिड़गिड़ाने के बावजूद बच्चे को नीकू वार्ड में बेड नहीं मिला। एम्स से जौलीग्रांट अस्पताल ले जाने के दौरान नवजात ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। नवजात के माता.पिता ने स्वास्थ्य मंत्री से न्याय की गुहार लगाई है।
रुड़की के ढंढेरा फाटक निवासी भूपेंद्र गुसाईं के 12 दिन के बच्चे का स्वास्थ्य अचानक बिगड़ गया। बच्चे का पेट फूलने लगा और उसको तेज बुखार आ गया। 30 जुलाई को भूपेंद्र ने नवजात को रुड़की के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। चिकित्सकों के अनुसार नवजात लेट आनसेट नियोनेटल सेप्सिस (अनियंत्रित और गंभीर संक्रमण) से पीड़ित था। भूपेंद्र ने बताया कि चिकित्सकों ने उन्हें नवजात को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराने की सलाह दी। एक अगस्त को वह रुड़की से चार हजार रुपये में एंबुलेंस बुक कर नवजात को एम्स लेकर आए। शाम करीब 7.45 पर वह एम्स की इमरजेंसी पहुंचे। आठ बजे इमरजेंसी में तैनात चिकित्सक बच्चे को देखने आए। चिकित्सक ने बताया कि बच्चे का नीकू वार्ड में भर्ती कराने की आवश्यकता है। इसके बाद चिकित्सक ने कहा कि वह अपने वरिष्ठ अधिकारी से नवजात को भर्ती करने के विषय में पता करके आते हैं।
भूपेंद्र ने बताया कि चिकित्सक ने उनको बताया की नीकू वार्ड में बेड ही उपलब्ध नहीं है। जिसके बाद वह और उनकी पत्नी नीलू करीब डेढ़ घंटे तक चिकित्सक की मिन्नते करते रहे, लेकिन जब बेड नहीं मिला तो करीब नौ बजे वह नवजात को लेकर जौलीग्रांट अस्पताल के लिए रवाना हो गए। यहां अस्पताल के बाहर उन्होंने देखा की नवजात की सांस रुक चुकी है। पिता भूपेंद्र का कहना है कि अगर समय पर उपचार मिल जाता तो उनके बच्चे की जान बच जाती। उन्होंने कहा स्वास्थ्य मंत्री से उनका अनुरोध है कि एम्स की स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार होना चाहिए। किसी मरीज की उपचार के अभाव में मौत नहीं होनी चाहिए।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एम्स ऋषिकेश के चिकित्सा अधीक्षक संजीव मित्तल ने कहा है कि नवजात लेट आनसेट नियोनेटल सेप्सिस से पीड़ित था। बच्चे को ऑक्सीजन सपोर्ट पर इमरजेंसी में भर्ती किया गया था, लेकिन उसको नीकू वार्ड में भर्ती करने की आवश्यकता थी। नीकू वार्ड में बेड उपलब्ध नहीं था। इसलिए नवजात का तत्काल उपचार संभव नहीं था। ऐसे में पिता को नवजात को दूसरे अस्पताल में ले जाने की सलाह दी गई।