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जहां रहने के तरसते हैं मैदान के लोग, वहां के लोग बन रहे मैदानी क्षेत्र में भीड़ का हिस्सा : जिलाधिकारी मनीष कुमार

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जिन लोगों की खातिर हमें मिल रही है पद प्रतिष्ठा, आखिर इसके ऐवज में हम उन्हें दे क्या रहे हैं? डीएम की कार्य संस्कृति से अफसरों के कार्य व्यवहार में आ रहा है बदलाव

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चम्पावत। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मॉडल जिले में जिलाधिकारी के रूप में एक किसान के बेटे मनीष कुमार ने अधिकारियों को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि जिन लोगों की खातिर हमें मोटी सैलरी, पद प्रतिष्ठा मिल रही है, उसके एवज में हम उन्हें दे क्या रहे हैं?


तीन सप्ताह के कार्यकाल में नए डीएम की ‘क्विक एक्शन, क्विक डिसीजन’ और ‘क्विक रिस्पांस’ की कार्य संस्कृति ने लोगों को जिला प्रशासन के और नजदीक ला दिया है। इसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि अब कार्यालयों मे कार्यों को लटकाने एवं लोगों को टरकाने की प्रवृति में बदलाव आने के साथ जनता से जुड़े सवालों में न केवल ‘क्विक एक्शन’ देखने को मिल रहा है। बल्कि अब परिणाम भी उसी तेजी के साथ नजर आ रहे हैं। जिसे देखते हुए डीएम का यह कहना सही माना जा रहा है कि वह दिन दूर नहीं जब सीएम पोर्टल में लोग शिकायत करना भूल जायेंगे।

लगातार 12 घंटे कार्य में लगे रहने वाले जिलाधिकारी को देखकर अब अधिकारियों के भी काम करने की कोई समय सीमा नहीं है बल्कि टूर के नाम पर शुक्रवार से ही गायब रहने वाले अधिकारी हर वक्त मुस्तैदी के साथ दिखाई दे रहे हैं। डीएम का मानना है कि मॉडल जिले के विकास के लिए अधिकारियों की सोच भी ‘मॉडल’ होनी चाहिए। जिसके लिए हर अधिकारी से कहा गया है कि वह ऐसी योजनाओं व कार्यक्रमों के प्रस्ताव लाएं जिसमें विकास का नया पुट और रोजगार की भी महक आनी चाहिए। जिलाधिकारी का इरादा पलायन कर चुके लोगों को अपनी माटी से जोड़कर गांव में विकास का ऐसा मॉडल तैयार करने का है जिसकी देखा देखी अन्य लोग उसे अपना सके। डीएम को इस बात का आश्चर्य हो रहा है कि ऐसे खुशनुमा वातावरण में रहने के लिए दिल्ली, मुंबई के लोग तो लालाइत हैं, लेकिन यहां के लोग ऐसे वातावरण से नाता तोड़कर मैदानी क्षेत्रों में भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं।

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