उत्तराखंड में नेता का चयन # सीधे दिल्ली से आएगा फरमान, विधानमंडल बैठक में लगेगी औपचारिक मोहर, जानिए दावेदारों का जीवन परिचय
उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद अब चर्चा है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा। इसे लेकर सुबह दस बजे भाजपा कार्यालय में विधानमंडल की बैठक होगी। हालांकि ये बैठक औपचारिक होगी। नाम दिल्ली से तय होकर यहां बताया जाना है। इसके बाद ही बैठक में दल के नेता के नाम पर मुहर लगने के बाद नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होगी। इसके बाद फिर शपथ ग्रहण कराई जाएगी। शपथ आज भी ग्रहण कराई जा सकती है। या फिर कल होगी। वहीं, सूत्र बताते हैं कि अभी तक नेता का नाम दिल्ली से बताया नहीं गया है। आज जल्द ही इस संबंध में फरमान आ सकता है। इसके बाद बैठक में सिर्फ औपचारिक तौर पर घोषणा हो सकती है। गौरतलब है कि छह मार्च को केंद्रीय पर्यवेक्षक वरिष्ठ भाजपा नेता व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह देहरादून आए थे। उन्होंने भाजपा कोर कमेटी की बैठक के बाद फीडबैक लिया था। इसके बाद उत्तराखंड में आगामी चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री बदलने का फैसला केंद्रीय नेताओं ने लिया था।
बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही नाम तय करेंगे। नाम कल ही तय हो जाना था, लेकिन कल दोनों नेता साथ नहीं बैठ पाए, इसलिए आज सुबह इसकी ओपचारिकता पूरी हो जाएगी। वहीं, बैठक में भाग लेने के लिए पर्यवेक्षक के रूप में वरिष्ठ भाजपा नेता व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ ही प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम कल ही देहरादून पहुंच गए थे। बैठक में सांसदों के भाग लेने की संभावना कम है। कारण ये ही कि दिल्ली में चल रहे बजट सत्र के लिए भाजपा ने सारे सांसदों को आज सुबह साढ़े नौ बजे एक बैठक में उपस्थित होने का विहिप जारी किया है। इससे इस बैठक में सांसदों का पहुंचना मुश्किल माना जा रहा है।
वहीं, अभी तक सीएम पद के लिए कई नाम उछाले जा रहे हैं। साथ ही डिप्टी सीएम भी बनाया जा सकता है। फिलहाल सीएम की दौड़ में जो नाम सामने आ रहे हैं, उनके बारे में यहां विस्तार से बताया जा रहा है। ये नाम अटकलों और कयास पर आधारित हैं। फिलहाल लोकसाक्ष्य ऐसा कोई दावा नहीं करता है। फिलहाल सतपाल महाराज और रमेश पोखरियाल निशंक का नाम का नाम सबसे ऊपर, फिर राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी का नाम है। एक नाम धन सिंह रावत का भी लिया जा रहा है। जो निवर्तमान सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की पसंद बताए जा रहे हैं।
सतपाल महाराज का जीवन परिचय
सतपाल महाराज वर्तमान में उत्तराखंड के पर्यटन एवं सिंचाई मंत्री हैं। सतपाल सिंह रावत को सतपाल महाराज के रूप में भी जाना जाता है। सतपाल महाराज का जन्म 21 सितंबर 1951 को कनखल (उत्तराखंड के हरिद्वार का एक कॉलोनी) में हुआ। वह प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु योगीराज परमंत श्री हंस और राजेश्वरी देवी के बेटे हैं। वह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य हैं।
वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के लिए भारत की संसद (15वीं लोक सभा) के निचले सदन के सदस्य भी थे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और 2014 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। वर्तमान में, वह उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री हैं।
2014 तक, सतपाल महाराज मानव उत्थान सेवा समिति के प्रमुख रहे और “ज्ञान” (नॉलेज) नामक मेडिटेशन तकनीक सिखाने का भी काम किया। इस आंदोलन के तहत दुनिया भर में कई जगहों के छात्रों के साथ ही आश्रम जुड़े, जिसका मुख्य कार्यालय भारत में है।
उत्तराखंड गठन में महत्वपूर्ण भूमिका
सतपाल महाराज ने उत्तराखंड के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक सांसद और केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री एच डी देवेगौड़ा और आई.के. गुजराल और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु पर उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए दबाव डाला था।
राजनीतिक सफर
1983 सतपाल महाराज ने ‘भारत जागो’ पदयात्रा का नेतृत्व किया है, जो 24 सितंबर 1983 को शुरू हुआ और बद्रीनाथ से दिल्ली तक 600 किमी दूरी तय की गई। उनकी यात्रा खतरनाक पहाड़ी इलाके के बीच थी। वह इस यात्रा के दौरान 500 गांवों से गुजरे और रास्ते में 30,000 से अधिक लोगों से मुलाकात की।
1985 250 किलोमीटर जन जागरण पदयात्रा 11 मार्च 1985 को गांधी मैदान, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) से शुरू होकर सिक्किम की राजधानी गंगटोक में समाप्त हुआ। यह पदयात्रा नेपाली भाषा को मान्यता दिलाने का समर्थन भी कर रही थी। इस पदयात्रा की सफलता के साथ ही संविधान की 8 वीं अनुसूची में भाषा को शामिल किया गया था।
1986 फरवरी 1986 में बोध गया से पटना तक जनता जगे पदयात्रा की गई। इस पदयात्रा का उद्देश्य जनता, खासकर युवा लोगों की मदद करना था।
1989 सतपाल महाराज ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) पार्टी के सदस्य के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया। 1989 उन्होंने पौड़ी गढ़वाल से लोकसभा चुनाव लड़ा और जनता दल के चंद्र मोहन से हार गए।
1991-सितंबर 1994)। 1991 फिर से साल 1991 के लोकसभा चुनाव में वह पौड़ी गढ़वाल से बीजेपी के भुवन चंद से हार गए।
1991 वह कार्यकारी समिति, पी.सी..सी. (आई), उत्तर प्रदेश के सदस्य बने। (मार्च 1991-सितंबर 1994)।
1992 सदस्य, राष्ट्रीय राहत और सदभावना समिति (राष्ट्रीय राहत और गुडविल समिति) (जनवरी 1 999-1994)। बाद में वह ए.आई.सी.सी (आई) के सदस्य बन गये। उन्होंने अक्टूबर 1994 तक इस पद पर काम किया।
1993 सदस्य, राज्य एकीकरण परिषद, यूपी (राज्य एकता परिषद) (मार्च 1993-अक्टूबर 1994)।
1994 संयोजक, महात्मा गांधी 125 वीं वर्षगांठ समारोह समिति, उत्तर प्रदेश, फरवरी 1994 से फरवरी 1995। संरक्षक, उत्तराखंड संयुक्ता संघर्ष समिति, अप्रैल 1994 से मार्च 1996।
1995 वह नारायण दत्त तिवारी के साथ कांग्रेस से अलग हो गए और कांग्रेस (तिवारी) में शामिल हो गए।
1995 उन्हें अक्टूबर 1995 से दिसंबर 1995 तक उत्तर प्रदेश इंदिरा कांग्रेस कमेटी (तिवारी), के उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया था।
1996 वह जनवरी 1996 से दिसंबर 1996 तक इंदिरा कांग्रेस (तिवारी), उत्तराखंड के अध्यक्ष थे। इसके अलावा वह 11 वीं लोक सभा के लिए चुने गए थे। उन्होंने 1996 में रेलवे के लिए और 1997 में वित्त के लिए केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया है।
1997 वह जून 1997 से मार्च 1998 तक वित्त राज्य मंत्री थे। वह भारत की आजादी की 50वीं वर्षगांठ की स्मृति के लिए कार्यान्वयन समिति के सदस्य भी बने। उन्होंने 1998 तक इस पद की सेवा की।
1998 वह पौड़ी गढ़वाल से मेजर जनरल (रिटायर्ड) भुवन चंद्र खंडूरी के खिलाफ लोकसभा चुनाव हार गए।
1999 कांग्रेस पार्टी की कमान सोनिया गांधी के संभालने के बाद वह दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए।
1999 वह दोबारा पौड़ी गढ़वाल से मेजर (रिटायर्ड) भुवन चंद्र खंडूरी से हार गए।
2000 वह एआईसीसी (AICC), उत्तराखंड के सदस्य बने।
2001 वह मानवाधिकार विभाग, उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बन गए।
2002 उन्होंने 8 फरवरी 2002 से 2004 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में काम किया।
2003 वह फरवरी 2003 से मार्च 2007 तक उत्तराखंड सरकार (कैबिनेट रैंक) में 20-प्वाइंट कार्यक्रम कार्यान्वयन विभाग के उपाध्यक्ष थे।
2004 वह पौड़ी गढ़वाल से लोकसभा चुनाव हार गए।
2008 वह मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए एआईसीसी समन्वयक बन गए। उन्होंने पौड़ी गढ़वाल से उपचुनाव में चुनाव लड़ा।
2009 उन्हें गढ़वाल निर्वाचन क्षेत्र से 15वीं लोकसभा (दूसरी अवधि) में फिर से निर्वाचित किया गया था। उन्होंने लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) तेजपाल सिंह रावत पी.वी.एस.एम, कांग्रेस पार्टी के वी.एस.एम को हराया। बाद में वह रेल मंत्रालय के सलाहकार समिति के सदस्य बन गए।
2010 उन्हें 5 मई 2010 को लोक लेखा समिति के सदस्य और 19 अक्टूबर 2010 को सामान्य प्रयोजन समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था। साथ ही वह रक्षा पर 20 सदस्यीय संसदीय स्थायी समिति के प्रमुख भी थे।
2014 उन्होंने 21 मार्च 2014 को कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए। इसके अलावा, उन्होंने 05 अप्रैल 2014 को 15वीं लोक सभा से इस्तीफा दे दिया।
2017 वह चौबट्टाखल निर्वाचन क्षेत्र से उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में विधायक के रूप में चुने गए थे। उन्होंने 7354 मतों से राजपाल सिंह बिष्ट को हराया।
रमेश पोखरियाल निशंक का परिचय
रमेश पोखरियाल “निशंक” भारतीय जनता पार्टी से संबंधित एक भारतीय राजनेता हैं। वे 2009 से 2011 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे। वे वर्तमान में 16 वीं लोक सभा में संसद सदस्य हैं। वे लोकसभा में उत्तराखंड के हरिद्वार संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं। डॉ. रमेश पोखरियाल का जन्म 15 अगस्त, 1959 को पिनानी ग्राम, तहसील चौबट़टाखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल तत्कालीन उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) में हुआ था। उनके पिता परमानन्द पोखरियाल और माता विश्वम्भरी देवी हैं। इनकी पत्नी का नाम कुसुमकान्ता पोखरियाल है।
डॉ. रमेश पोखरियाल 1991 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए कर्णप्रयाग निर्वाचन-क्षेत्र से चुने गए थे। इसके बाद 1993 और 1996 में पुनः उसी निर्वाचन-क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। 1997 में वे उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के उत्तरांचल विकास मंत्री बनें। सन् 2002 में उन्होंने उत्तरांचल विधान सभा के लिए थालिसियाँ निर्वाचन-क्षेत्र से चुनाव लड़ा पर वे हार गए। फिर 2007 में वे उसी निर्वाचन-क्षेत्र से उत्तराखण्ड विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके अलावा इनकी महत्त्वपूर्ण राजनीतिक यात्रा निम्न प्रकार हैं-
-पृथक् उत्तराखण्ड राज्य निर्माण हेतु सन् 1978 से संघर्षरत।
-सन् 1987 में उत्तराखण्ड प्रदेश संघर्ष समिति के केन्द्रीय प्रवक्ता चयनित हुए।
-उत्तराखण्ड राज्य निर्माण में सक्रिय भूमिका ।
-ख़ासतौर से उधमसिंह नगर व हरिद्वार को उत्तराखण्ड में मिलाए जाने में उल्लेखनीय योगदान ।
-सन् 1991, 1993 व 1996 में लगातार तीन बार कर्णप्रयाग, विधानसभा क्षेत्र से उत्तर प्रदेश की विधानसभा हेतु निर्वाचित।
-उत्तर प्रदेश विधानसभा की अनेक समितियों के सदस्य तथा अध्यक्ष नामित।
-सन् 1997 में अविभाजित उत्तर प्रदेश में पर्वतीय विकास विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे।
-सन् 1998 में अविभाजित उत्तरप्रदेश में संस्कृति, पूत, धर्मस्व व कला विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे।
-9 नवंबर, 2000 को उत्तराखण्ड प्रदेश के गठन के उपरान्त उत्तराखण्ड सरकार में वित्त, ग्रामीण विकास, पेयजल, चिकित्सा शिक्षा व राजस्व सहित बारह विभागों के कैबिनेट मंत्री रहे।
-सन् 2007 में थलीसैंण विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उत्तराखण्ड की गौरवशाली विधानसभा हेतु निर्वाचित।
-2007 में उत्तराखण्ड सरकार में स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, आयुष, आयुष शिक्षा, विज्ञान व प्रौद्योगिकी एवं भाषा विभाग के केबिनेट मंत्री रहे।
2009 – 2011 सदन के नेता, उत्तराखंड विधान सभा।
-27 जून, 2009 को उत्तराखण्ड के पाँचवे यशस्वी मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए और कार्यकाल 11 सितम्बर, 2011 तक चला।
2014 वे उत्तराखंड के हरिद्वार निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी की रेणुका रावत को हराकर 16 वीं लोक सभा के लिए चुने गए।
2014 वे उत्तराखंड के हरिद्वार निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी की रेणुका रावत को हराकर 16 वीं लोक सभा के लिए चुने गए।
साहित्यिक पृष्ठभूमि
डॉ. रमेश पोखरियाल एक भारतीय राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ हिन्दी के साहित्यकार भी हैं। इन्होंने अनेक कविता, उपन्यास और कथा संग्रह लिखे। इनकी कृतियाँ का संग्रह निम्न प्रकार है-
अन्य भाषाओं में अनुवाद
मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सैयद रहमतुल्ला के सानिध्य में “ए वतन तेरे लिए” व “खडे हुए प्रश्न” का तमिल व तेलुगु भाषाओं में अनुवाद।
प्रोफेसर कुन्दा पेडनेकर व श्री विलास गीते के सानिध्य में “खडे हुए प्रश्न” व “क्या नहीं हो सकता” का मराठी में अनुवाद।
हैम्बर्ग विश्वविद्यालय द्वारा “बस एक ही इच्छा”, “प्रतिक्षा” व “तुम और मै” कृतियों का जर्मनी में अनुवाद। अनेक कृतियां पाठ्याक्रमों में सम्मिलित।
“भीड साक्षी है” कृति का अंग्रेज़ी में अनुवाद व बर्लिन, जर्मनी में अंग्रेज़ी के सुविख्यात लेखक डेविड फ्राउले द्वारा विमोचन।
प्रो. आरेन्सकाया तांतनियां द्वारा कहानियों का रशियन में अनुवाद।
प्रकाशनाधीन कृतियाँ
धरती का स्वर्ग उत्तराखण्डः भाग 1- पावन गंगा एवं उत्तराखण्ड की नदियाँ
धरती का स्वर्ग उत्तराखण्डः भाग 2- अतुल्य हिमालय
पल्लवी (उपन्यास)
अपना-पराया (उपन्यास)
शक्तिरूपा (उपन्यास)
नन्दा-दि हिमालयन गॉडेस (हिमालय का महाकुम्भ-नन्दा राजजात का अंग्रेज़ी अनुवाद)
पत्रकारिता व अन्य गतिविधियाँ
विगत तीस वर्षो से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत व 23 वर्षों से “दैनिक सीमान्त वार्ता” के प्रधान सम्पादक।
“नई चेतना” शोध संस्थान के संस्थापक निदेशक।
“नई राह नई चेतना” शोध पत्रिका के सम्पादक।
कई राष्ट्रीय व स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं से सम्बद्व।
अनेक राष्ट्रीय एवं स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर कविताएं, कहानियां और लेख प्रकाशित।
परम हिमालय निधी न्यास के संस्थापक अध्यक्ष।
वर्तमान में दो दर्जन से अधिक सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं से जुडे हुए हैं।
सम्मान
देश हम जलनें न देंगे कृति हेतु तत्कालीन राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह द्वारा राष्ट्रपति भवन में सम्मानित।
‘मातृभूमि के लिए’ कृति हेतु तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा राष्ट्रपति भवन में सम्मानित।
‘ऐ वतन तेरे लिए’ कृति के विमोचन के अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा राष्ट्रपति भवन में संस्कृति संस्था के सौजन्य से ‘साहित्य गौरव’’ सम्मान से सम्मानित।
अर्न्तराष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, कोलम्बो (श्रीलंका) द्वारा आयुष के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हेतु दुनिया के 99 देशों के प्रतिनिधियों के मध्य सम्मान व ‘’डॉक्टर ऑफ साईन्स’’ की मानद उपाधि।
‘राष्ट्रधर्मिता और कवि निशंक’ कृति के विमोचन अवसर पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री भैंरों सिंह शेखावत द्वारा सम्मानित।
‘खड़े हुए प्रश्न’ कृति के विमोचन- अवसर पर भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ‘साहित्य भारती’ सम्मान।
‘कोई मुश्किल नही’ कृति के विमोचन- अवसर पर प्रसिद्व् फिल्म निर्माता डॉ. रामानन्द सागर द्वारा ‘साहित्य चेता’ सम्मान।
राष्ट्रभक्ति से ओत-पोत रचनाओं हेतु राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रख्यात महानुभावों एवं संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
हैम्बर्ग विश्वविद्यालय जर्मनी के अतिरिक्त हॉलैण्ड, नॉर्वे, रूस सहित कई यूरोपीय देशों व विश्वविद्यालयों द्वारा साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मानित।
‘भारत अर्न्तराष्ट्रीय मैत्री समिति’ द्वारा भारत गौरव सम्मान-2007।
हिमालय लोक कला संस्थान, नई दिल्ली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान।
उत्तराखण्ड उत्थान समिति, हरिद्वार द्वारा “गढ रत्न” सम्मान।
हिमालय रक्षा मंच, चण्डीगढ द्वारा “हिमपुत्र” सम्मान।
उत्कृष्ट साहित्य सेवा के लिये अर्न्तराष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, कोलम्बो (श्रीलंका) द्वारा ‘’डॉक्टर ऑफ लिटरेचर’’ सम्मान।
इनके अतिरिक्त देश-विदेश स्थित 300 से अधिक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्थाओं द्वारा अनेक अवसरों पर सम्मानित।
अनिल बलूनी का परिचय
उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद व बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी दिल्ली में 6-बी हाउस नंबर- 35 लोधी एस्टेट में रहते हैं। वहां पहले कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अपने परिवार के साथ पिछले 20 सालों से रह रही थी। मोदी सरकार ने प्रियंका को नोटिस जारी कर एक अगस्त तक बंगला खाली करने का आदेश दिया। इसके बाद अब इस बंगले को अनिल बलूनी के नाम आवंटित कर दिया गया।
बखूबी जानते हैं मंजिल तक पहुंचना
अनिल बलूनी ने उत्तराखंड के जंगलों में सियासत के गुर सीखे और केंद्र की राजनीति तक पहुंच गए। वह अच्छी तरह जानते हैं कि मंजिल तक कैसे पहुंचा जाता है। बलूनी शांत और विचारों में मग्न रहने वाले नेताओं में शुमार किए जाते हैं। वह हर शब्द को नाप-तौल कर बोलने वाले आदमी हैं। चाहे सार्वजनिक तौर पर बोलना हो या निजी रूप से। इसके चलते सामने वाले को कभी पता ही नहीं लगने देते किए सियासत के लिए धड़कने वाले उनके दिल में क्या छिपा है। इसी का नतीजा है कि कभी पत्रकार रहे अनिल बलूनी अब मोदी-शाह के करीबी लोगों में से हैं। वह राज्यसभा सांसद और भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ के प्रभारी हैं।
जन्मस्थान और राजनीतिक सफर
अनिल बलूनी का जन्म 2 सिंतबर 1972 में उत्तराखंड के नकोट गांव (जिला पौड़ी) पट्टी- कंडवालस्यूं में हुआ। बलूनी युवावस्था से राजनीति में सक्रिय रहे। भाजयुमो के प्रदेश महामंत्री, निशंक सरकार में वन्यजीव बोर्ड में उपाध्यक्ष, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और फिर राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख बने।
वह 26 साल की उम्र में सक्रिय चुनावी राजनीतिक में उतर आए और राज्य के पहले विधानसभा चुनाव 2002 में कोटद्वार सीट से पर्चा भर, लेकिन उनका नामांकन पत्र निरस्त हो गया। इसके खिलाफ वे कोर्ट गए और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2004 में कोटद्वार से उपचुनाव लड़ा, लेकिन हार गए थे।
इसके बाद भी वे सक्रिय रहे। हालांकि, पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान वह छात्र राजनीति में सक्रिय थे और दिल्ली में संघ परिवार के दफ्तरों के आसपास घूमते-रहते थे। संघ के जाने-माने नेता सुंदर सिंह भंडारी से उनकी नजदीकियां बढ़ीं। जब सुंदर सिंह भंडारी को बिहार का राज्यपाल बनाया गया तो वह बलूनी को अपना ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) बनाकर अपने साथ पटना ले गए। इसी के बाद सुंदर सिंह भंडारी जब गुजरात के राज्यपाल बन कर गए तो बलूनी उनके ओएसडी थे। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे।
अनिल बलूनी ने नरेंद्र मोदी के साथ मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया। अगले कुछ सालों के भीतर वह मोदी के पसंदीदा लोगों में शामिल हो चुके थे। शाह के 2014 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अनिल बलूनी को पार्टी प्रवक्ता और मीडिया प्रकोष्ठ का प्रमुख बनाया गया। एक तरह से वो अमित शाह के भी सबसे भरोसेमंद लोगों में शामिल हो गए।
वह मीडिया संबंधी कार्यों को देखते हैं। शाह और मोदी के मीडिया संबंधी कार्यक्रमों का प्रबंधन करते हैं तथा दिन-प्रतिदिन के खबरों पर नजर रखते हैं। जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप भी करते हैं। पार्टी की छवि के खिलाफ कोई बात जाने पर वह स्थिति संभालने के लिए पार्टी प्रवक्ताओं या वरिष्ठ मंत्रियों को काम पर लगाते हैं। अनिल बलूनी पीएम मोदी और अमित शाह के करीब माने जाते हैं।
धनसिंह रावत का परिचय
धन सिंह रावत का जन्म 7 अक्टूबर 1972 धन सिंह रावत का जन्म पौड़ी गढ़वाल के एक गाँव में हुआ था और गाँव के स्कूल में उनकी शिक्षा हुई थी। उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से मास्टर और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य हैं। उन्होंने उत्तराखंड विधानसभा के सदस्य के रूप में श्रीनगर गढ़वाल के निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। एक राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया है।
राजनीतिक सफर
उत्तराखंड में भाजपा के लिए एक पार्टी सचिव।
वह 2012 में श्रीनगर गढ़वाल के निर्वाचन क्षेत्र में राज्य विधानमंडल के लिए चुनाव जीतने में विफल रहे।
उन्होंने 2017 में विधायिका में प्रवेश किया और तब से राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया है; (स्वतंत्र प्रभार) उच्च शिक्षा के लिए जिम्मेदारी के साथ, सहकारी समितियाँ, डेयरी विकास और प्रोटोकॉल।