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उत्तराखंड में खत्म हुई 200 साल पुरानी व्यवस्था, एक हत्याकांड से बदल रहा पहाड़ की पुलिसिंग का स्वरूप

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उत्तराखंड के 1,983 राजस्व गांव से हटाया जा रहा पटवारी सिस्टम, अब यह गांव आएंगे पुलिस के दायरे में

देहरादून। उत्तराखंड में अब धीरे-धीरे पटवारी व्यवस्था को खत्म किया जा रहा है। जिसके तहत तमाम राजस्व क्षेत्र को रेगुलर पुलिस के हवाले किया जा रहा है ताकि, गांवों में भी कानून व्यवस्था मजबूत हो सके। साल 2023 में 1500 से ज्यादा गांवों को राजस्व पुलिस से हटाकर रेगुलर पुलिस को दिए जाने का फैसला लिया गया था, लेकिन मामला कोर्ट पहुंच गया।

हालांकि, इससे पहले राज्य सरकार ने इस फैसले पर कैबिनेट में मुहर लगा दी थी, लेकिन कुछ कानूनी पहलू के चलते इसे लागू करना संभव नहीं हो पा रहा था। अब करीब 2 हजार गांवों को राजस्व पुलिस से हटाकर रेगुलर पुलिस के हवाले करने के फैसले पर धामी सरकार ने मुहर लगा दी है। जिसके बाद इससे क्या फायदा और क्या नुकसान होगा? इसकी चर्चाएं हो रही हैं।

दरअसल, धामी सरकार ने उत्तराखंड के 1,983 राजस्व गांवों को नियमित पुलिस क्षेत्राधिकार में शामिल करने का बड़ा निर्णय लिया है। सरकार की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि यह ऐतिहासिक निर्णय है। इससे जनता का पुलिस पर भरोसा बढ़ेगा। इसके अलावा सरकार का कहना है कि इससे ग्रामीण और सीमांत इलाकों में एक सुरक्षित सामाजिक वातावरण बनेगा। साथ ही राज्य में पुलिस व्यवस्था ज्यादा जवाबदेह और प्रभावी होगी। जिससे अपराधियों में डर और जनता में विश्वास दोनों बढ़ेंगे।

‘इस कदम से राज्य की कानून व्यवस्था और मजबूत होगी। साथ ही जनता के मन में सुरक्षा का भाव बढ़ेगा। अब इन गांवों में अपराध होने पर सीधे रेगुलर पुलिस कार्रवाई करेगी। जिससे अपराध नियंत्रण, तत्काल जांच और न्याय की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकेगी।’ – पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

हाईकोर्ट के आदेश के 7 साल बाद हुआ अमल…

दरअसल, यह फैसला और काम इतना आसान नहीं था। साल 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि प्रदेश से राजस्व पुलिस प्रणाली समाप्त कर रेगुलर पुलिस को जिम्मेदारी सौंपी जाए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अपराध नियंत्रण और न्याय की दृष्टि से राजस्व पुलिस व्यवस्था अप्रभावी साबित हो रही है।
हालांकि, उस समय सरकार ने संसाधनों और ढांचे की कमी का हवाला देते हुए इस पर तत्काल अमल नहीं किया था, लेकिन अंकिता भंडारी हत्याकांड (सितंबर 2022) जैसे मामलों के बाद राजस्व पुलिस व्यवस्था पर लगातार सवाल उठने लगे। जनता और विपक्ष के बढ़ते दबाव के बाद अब जाकर सरकार ने इसे लागू करने का मन बनाया है।

200 साल पुरानी व्यवस्था अंग्रेजों की देन…

राजस्व पुलिस प्रणाली की जड़ें ब्रिटिश शासन से जुड़ी हुई हैं। अंग्रेजों ने पहाड़ी इलाकों में सीमित संसाधनों के चलते राजस्व कर्मचारियों (पटवारी) को ही पुलिस की जिम्मेदारी सौंप दी थी। यह व्यवस्था बाद में उत्तराखंड बनने के बाद भी कई इलाकों में जारी रही। राजस्व पुलिस के अधिकार क्षेत्र वाले गांवों में पटवारी ही जांच अधिकारी, रिपोर्ट लेखक और अभियोजन की प्रारंभिक कड़ी होता था, लेकिन न तो उसके पास पर्याप्त प्रशिक्षण था, न पुलिसिंग के लिए संसाधन। इसका नतीजा ये हुआ कि समय के साथ जब अपराधों की प्रकृति बदली तो यह व्यवस्था पिछड़ी और बेहद लचीली होती चली गई।

पूर्व डीजीपी ने बताया ऐतिहासिक फैसला…

राजस्व पुलिस व्यवस्था के अंत पर उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी एबी लाल ने इसे ऐतिहासिक और साहसिक कदम बताया। उन्होंने कहा कि ‘राजस्व पुलिस सिस्टम 200 साल पुराना औपनिवेशिक ढांचा था। जिसे अब समाप्त करना, एक आधुनिक पुलिसिंग व्यवस्था की ओर बढ़ने जैसा है। पहाड़ी इलाकों में अब क्राइम का स्वरूप बदल चुका है। पहले जहां छोटे-मोटे झगड़े या चोरियां होती थीं। अब साइबर अपराध, नशा तस्करी, महिलाओं के खिलाफ अपराध और संगीन हत्याएं भी हो रही हैं। ऐसे में राजस्व पुलिस जैसी अप्रशिक्षित व्यवस्था अपराध रोकने में असमर्थ थी।

अपराधी उठाते थे सिस्टम की कमजोरियों का फायदा…

इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजस्व पुलिस की सीमाओं के कारण अपराधियों को अक्सर जांच से बच निकलने का मौका मिल जाता था। राजस्व पुलिस सिर्फ छोटे मामलों में प्राथमिकी दर्ज कर सकती थी। जबकि, संगीन मामलों हत्या, बलात्कार, डकैती की जांच आदि रेगुलर पुलिस को सौंपनी पड़ती थी।
इस प्रक्रिया में कई बार महत्वपूर्ण सबूत या गवाह प्रभावित हो जाते थे। जिससे केस कमजोर हो जाता था। इसके अलावा राजस्व पुलिस के पास सीमित स्टाफ वेतन और कोई तकनीक या कानूनी प्रशिक्षण नहीं होता था। कई बार पटवारी के पास एक साथ राजस्व और पुलिस दोनों जिम्मेदारियां होती थी। जिससे न तो कानून व्यवस्था मजबूत हो पाती थी, न ही प्रशासनिक काम।