चुनावी चकल्लस # वरिष्ठ पत्रकार दिनेश पांडेय की एक और तुकबंदी, जंग खाये खोटे सिक्के उछलने लगे हैं…


मित्रो नमस्कार। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावी की रणभेरी के तहत सियासी पारा गर्माया है। प्रत्याशी डोर टू डोर संपर्क कर रहे हैं। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। नेता और छुटभय्ये जैसे कई खोटे सिक्के भी उछलने लगे हैं। इन्हीं की लेकर तुकबंदी का प्रयास किया गया है। आप भी इसका मजा लें …

कौड़ी की जिनकी औकात नहीं,
दूसरों की हैसियत बताने लगे हैं।
अपनी गिरेबां में झांके बिना,
दूसरे की इज्जत उछाने लगे हैं।
जो कर रहा सवाल, जबाव में उसे ही कसूरवार बताने लगे हैं।
चुनाव आते ही जंग खाये खोटे सिक्के उछलने लगे हैं।
सूरज की रोशनी को स्याह बता, उस पर थूकने लगे हैं।
अपने को परमज्ञानी, दूसरों को कालीदास बताने लगे हैं।
बन कर चारणभाट, उन्हें फिर देवता बताने लगे हैं।
चुनाव आते ही जंग खाये खोटे सिक्के उछलने लगे हैं।
काले धंधों की फितरत रख, ईमान को बेईमान बताने लगे हैं।
दुगल्लों की प्रजाति बन, दूसरों की निष्ठा कमतर करने लगे हैं।
अपने चरित्र को क्लीन बता, दूसरे पर कीचड़ उछालने लगे हैं।
चुनाव आते ही जंग खाये खोटे सिक्के उछलने लगे हैं।
मक्कारी के हैं जो मास्टर, सज्जनों को दागदार बताने लगे हैं।
शराफत का चोला पहन, उनकी जड़ों में मट्ठा डालने लगे हैं।
सीसीटीवी कैमरा बन, इधर कि उधर करने लगे हैं।
चुनाव आते ही जंग खाये खोटे सिक्के उछलने लगे हैं।
पांच साल से जिनकी नहीं जा रही थी सुनी, अब वे चिल्लाते हुए अपनी सुनाने लगे हैं।
अपने नेता को बैरंग होता देख, दुश्मन के दुश्मन का गुण गाने लगे हैं।
अब्दुल्ला की शादी में दिवाना बन, बेगाने खुद को फूफा बताने लगे हैं।
चुनाव आते ही जंग खाये खोटे सिक्के उछलने लगे हैं।
कुर्सी पर जो होते अकड़ू, बैरंग होत जनसेवक कहलाने लगे हैं।
अपनी कार्यप्रणाली भूले, दूसरे की कमियां खूब भुनाने लगे हैं।
सोशल मिडिया में दूसरे की खाल उधेड़, अपने चितकबरों को छुपाने लगे हैं।
चुनाव आते ही जंग खाये खोटे सिक्के उछलने लगे हैं।
दिनेश चंद्र पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार व जिलाध्यक्ष वंचित राज्य आंदोलनकारी संगठन, चम्पावत
