चम्पावत : चैतोला मेले में ढोल नगाड़ों के साथ चौखाम बाबा मंदिर पहुंचे चमू के वीर
लोहाघाट/चम्पावत। लोहाघाट विकासखंड के गुमदेश क्षेत्र में चमदेवल के प्रसिद्ध चैतोला मेले में गुरुवार को ढोल नगाड़ों और सिर में पगड़ी बांधकर चमू के वीर चौखाम बाबा मंदिर पहुंचे। जहां चमू देवता की शान पर वीर रस पर आधारित ढुस्कों का गायन किया।
गुरुवार को चमदेवल के चौखाम बाबा मंदिर में सुबह पंडित मदन कलौनी और शंकर दत्त पांडेय ने पूजा अर्चना संपन्न कराई। चौखाम बाबा के धामी राहुल सिंह, लक्ष्मण सिंह, जोगा सिंह, तारा सिंह ने हवन यज्ञ के आहूतियां दीं और नवरात्रि का विसर्जन किया। दोपहर बाद त्यूरीज्यूला बरगोली, मढ़, शिलिंग-जिंडी, चोपता, बसकुनी, न्योलटुकरा, जाख और सिरकोट से जत्थों के आने का सिलसिला शुरू हुआ। मेला कमेटी अध्यक्ष खुशाल सिंह धौनी और कोषाध्यक्ष कल्याण सिंह धौनी ने बताया कि मेले के पहले दिन खाली डोला चमू देवता के मंदिर से मढ़ गांव ले जाया जाता है। शुक्रवार को मड़ गांव से डोले में चमूदेवता के डांगर अवतरित होकर श्रद्धालुओं के साथ चौखाम बाबा मंदिर आएंगे। शनिवार को व्यापारिक मेला होगा। इस मौके पर कुंदन सिंह पाटनी, हरक सिंह भंडारी, गुमान सिंह प्रथोली, मदन सिंह पाटनी, अमर राम, भगत राम, जोत राम, रमेश चंद, डीकर चंद, शंकर चंद, जगन्नाथ सिंह धौनी, विनोद सिंह धौनी, देव सिंह धौनी आदि मौजूद रहे।
चमू देवता को चढाने वाले पापड़ का विशेष महत्व
लोहाघाट। गुमदेश क्षेत्र के प्रसद्धि चमदेवल के चैतोला मेले में चमू देवता को चढ़ाने वाले प्रसाद यानी चावल के पापड़ों का विशेष महत्व माना जाता है। चमू देवता को चढाने वाले पापड़ को केवल महिलाएं ही भाप विधि से बनाती हैं। महिलाएं यह पापड़ विशेष विधि से शुद्धता में रहकर रामनवमी के दिन बनाती हैं।
मेला कमेटी अध्यक्ष खुशाल सिंह धौनी, पुरोहित पंडित मदन कलौनी और पंडित शंकर दत्त पांडेय बताते हैं कि महाभारत काल में क्षेत्र में बकासुर नामक दैत्य का आतंक था। वह हर रोज एक नरबलि लेता था। जब चमू देवता ने अपने साथियों के साथ बकासुर दैत्य का वध किया तो चमू देवता को विशेष रूप से बनाए गए चावल के पापड़ भेंट किए गए। तब से यह परंपरा चली आ रही है। उन्होंने बताया कि चमू देव को चढ़ने वाले पापड़ महिलाएं रामनवमी को बनाती हैं। पहले तांबे के बड़े बर्तन में पानी उबाला जाता है, फिर साल के पत्तों में स्थानीय स्तर पर उगाए जाने वाले लाल चावल का पेस्ट लगाया जाता है। तांबे के बर्तन के उपर लकड़ियों के सहारे पत्तों को रखा जाता है और भाप से यह तैयार होता है। जब तक यह पापड़ चमू देवता को चढ़ाए नहीं जाते हैं तब तक गांव में शुद्ध रूप से खाना बनाया जाता है।
चमू के साथी लाटा और भराड़ा को भी पूजा जाता है़
लोहाघाट। गुमदेश के चैतोला मेले में चमू देवता के साथ उनके साथ लाटा और भराड़ा का भी विशेष महत्व माना जाता है। क्षेत्र के लोग हर साल चमू देवता के साथ उनके दो मित्रों को पूजना नहीं भूलते हैं। पंडित शंकर दत्त पांडेय और पंडित मदन कलौनी ने बताया कि जब चमू देवता ने अपने साथियों के साथ बकासुर दैत्य का वध किया गया तो युद्ध में चमू का साथ दे रहे एक साथी की जीभ कट गई थी और दूसरा लंगड़ा हो गया। तब से हर वर्ष जब भी मेला लगता है तो चमू देवता के साथी लाटा और भराड़ा को भी बराबर पूजा जाता है। पुरातन काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार चमू देवता के साथ विशेष रूप से पापड़ चमू देवता और उनके साथ लाटा और भराड़ा को अर्पित किए जाते हैं।