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चम्पावत : लोहाघाट के एबटमाउंट में एस्ट्रोवीक के तहत आयोजित हो रही विभिन्न गतिविधियां

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जनपद चम्पावत के लोहाघाट क्षेत्र में स्थित एबटमाउंट में 15 मई की शाम से एस्ट्रोवीक की शुरुआत हुई। जिसके तहत प्रतिभागियों ने एबटमाउंट माउंट क्षेत्र के भ्रमण के साथ साथ बर्ड वाचिंग भी की गई।

बुधवार को प्रातः 4:30 बजे से फील्ड में जाकर बर्ड फोटोग्राफी सेशन की गई। जिसमें कुल 20 प्रतिभागियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। मेंटर फोटोग्राफ सलील डोभाल ने प्रतिभागियों के साथ चर्चा की। दोपहर सत्र के दौरान 16 मई की रात्रि को 3 बजे तक अपने अपने कैमरे में की गई एस्ट्रो फोटोग्राफी को स्लाइड के माध्यम से एक दूसरे के साथ साझा किया गया। अपराह्न में सभी प्रतिभागियों के फोटोग्राफी की स्लाइड शो का प्रदर्शन किया गया।
इस मौके पर जिलाधिकारी नरेन्द्र सिंह भंडारी भी मौजूद रहे। उन्होंने आयोजन की सफलता के लिए सभी का आभार व्यक्त किया। कहा कि भविष्य में भी इस प्रकार के आयोजन आगे भी किए जाएंगे। जिससे क्षेत्र में पर्यटन भी बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पहली बार एस्ट्रोवीक का आयोजन जो चम्पावत में किया गया है यह एक जिले का सौभाग्य है। उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों को भी फोटोग्राफी को सीखने के अवसर मिलेंगे।
कार्यक्रम में जनपद के साथ ही राज्य एवं देश के विभिन्न राज्यों से आए फोटोग्राफरों ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफर अनूप साह, थ्रीश कपूर, अजय तलवार, सलिल डोभाल, मोहम्मद आसिफ को सम्मानित किया गया। सायंकाल के बाद अजय तलवार द्वारा टेलीस्कोप के माध्यम से एस्ट्रो ऑब्जर्वेशन करवाया गया। जिलाधिकारी द्वारा टेलिस्कोप के माध्यम से तारामंडल को देखा गया।

प्रचार-प्रसार के अभाव में उत्तराखंड के हिमालय को नहीं जानते पर्यटक: साह
लोहाघाट। पद्मश्री फोटोग्राफर अनूप साह ने कहा कि उत्तराखंड में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन व्यापक प्रचार-प्रसार न मिलने से पर्यटक स्थल और यहां की खूबसूरत वादियां पर्यटकों की आंखों से ओझल हैं। पर्यटक उत्तराखंड के हिमालय के बजाय नेपाल के हिमालय को ही जानते हैं। बड़ी संख्या में उसे देखने के लिए वहां पहुंचते हैं। उन्होंने उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों, यहां की झीलों, नदियों, पहाड़ों, दुर्लभ पशु पक्षियों के बेहतरीन चित्रों को वृहद स्तर पर प्रचारित प्रसारित करने पर जोर दिया। साह ने बताया कि भारत में करीब 1300 प्रजातियों के पक्षी हैं, जिनमें से अकेले उत्तराखंड में 800 प्रजातियां हैं। इनका प्रचार-प्रचार न होने से पर्यटकों की नजर नहीं पड़ती है। आज नदियों में ब्लीचिंग पाउडर, करंट, ब्लास्टिंग से दुर्लभ प्रजाति की महाशीर मछली का अस्तित्व विलुप्त होने की कगार में है। उन्होंने एबटमाउंट में हेली सेवा शुरू करने पर भी जोर दिया।

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