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क्षैतिज आरक्षण बहाल किए जाने की मांग को लेकर टनकपुर में युवतियों ने किया प्रदर्शन, सीएम को ज्ञापन भेजा

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टनकपुर। प्रदेश सरकार से विभिन्न नौकरियों में महिलाओं का 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण बहाल किए जाने को लेकर ठोस कार्यवाही किए जाने की मांग करते हुए विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही युवतियों ने यहां प्रदर्शन किया। बाद में सीएम को इस संबंध का ज्ञापन भेजा गया।
मुख्यमंत्री को भेजे गए ज्ञापन में युवतियों ने कहा है कि ज्य में 10 अगस्त 2021 को उत्तराखंड सम्मिलित राज्य सिविल अधीनस्थ प्रवर सेवा से 318 पदों हेतु नोटिफिकेशन किया गया। जिसकी प्रारंभिक परीक्षा 3 अप्रैल 2022 को संपन्न हुई एवं जिसकी मुख्य परीक्षा 14 से 17 अक्टूबर को प्रस्तावित है। राज्य गठन के उपरान्त ही वर्ष 2002 के एक शासनादेश के द्वारा उत्तराखंड की महिलाओं हेतु राज्य में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का प्रावधान किया गया था। जिसमें 2006 में संशोधन किया गया। कहा गया है कि वर्तमान में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में इस शासनादेश को अवैधानिक मानते हुए इसे समाप्त कर दिया है जिससे प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों के हितों का हनन हो रहा है। साथ ही अपने एक और निर्णय में माननीय कोर्ट ने आयोग को कट ऑफ रिवाइज करने के निर्देश भी दिए हैं। जिससे पूर्व में मुख्य परीक्षा दे चुकी महिला अभ्यर्थियों में संशय बना हुआ है कि क्या 14 से 17 अक्टूबर को आयोजित होने वाली परीक्षा अवैध करार दिए जाने के चलते प्रदेश की महिलाएं पीसीएस मुख्य परीक्षा में अपने प्रतिनिधित्व केअधिकार से वंचित रह जाएंगी।

अंजली चंद


उच्च न्यायालय में निर्णित एक पूर्व केस ओम प्रकाश गौर बनाम उत्तराखंड राज्य के आलोक में भी उम्मीदवारों के संदर्भ में उच्च न्यायालय उत्तराखंड ने यह निर्णय दिया था कि एक बार चयन प्रक्रिया शुरू होने के उपरांत उसके नियमों में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता यदि वह किसी अभ्यर्थी के साथ पक्षपातपूर्ण हो जाए किंतु यहां इस निर्णय में न्यायालय द्वारा उत्तराखंड की महिला अभ्यर्थियों के हितों की सरासर अनदेखी की गई है। कहा गया है कि अनुच्छेद 14 के अनुसार वर्ग विधान का निषेध किया गया है परंतु वर्गीकरण का निषेध नहीं किया गया है किंतु इसके आधार युक्तियुक्त होने चाहिए। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि हमारे प्रदेश की महिलाएं आज भी एक प्रकार का वंचित जीवन जी रही है। जहां उनके पास आगे बढ़ने के अवसर सीमित हैं। पहाड़ की विषम परिस्थितियों में शिक्षा पाने वाली तैयारी करने वाली ये महिला अभार्थी आज भी अन्य राज्यों की तुलना में संसाधनों के मामले में पिछड़ी हुई है। एक राज्य के निवासियों को राज्य सेवाओं में मिलने वाली अधिमान्यता उस राज्य में संसाधनों के समुचित आवंटन में मदद करती है और राज्य के निवासियों को राज्य की सीमाओं के अंदर कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करती है। यह पिछड़े राज्यों में बड़े शहरों की ओर पलायन जैसी गंभीर समस्या को भी कम करती है जिससे हमारे शहरों के ऊपर दबाव भी कम हो जाता है।
ज्ञापन में कहा गया है कि राज्य सेवाओं में प्रदेश की महिलाओं को मिल रहे 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण को बहाल करके मुख्य परीक्षा में अपना प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जाए, ताकि हमारे प्रदेश की महिला अभ्यर्थी के मन में मुख्य परीक्षा में बैठने के विषय के संदर्भ में किसी भी प्रकार का संशय ना रहे। राज्य के गठन के समय हमारी मैदानी और पर्वतीय महिलाओं का बराबर का योगदान रहा है। उनका यह योगदान स्वयं हेतु नहीं बल्कि अपने राज्य के लिए था। वर्तमान राज्य के अधिकांश महिलाएं अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए सरकारी सेवाओं की तैयारी कर रही है और हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद प्रदेश की सभी तैयारीरत महिलाओं की तैयारी को नुकसान पहुंचा है।‌ इस अवसर पर अंजली चंद, उद्देश्य शर्मा, निकिता, पूजा, बबीता, तनुजा सहित आदि बालिकाएं उपस्थिति थीं।