जज से हुआ एक गलत फैसला तो खुद को दी फांसी की सजा, अब बन गए देवता, इस मंदिर में होती है पूजा
भारत में न्याय व्यवस्था को हमेशा से सर्वोच्च स्थान दिया जाता रहा है। भारतीय रियासतों में न्याय के लिए बकायदा अलग विंग हुआ करते थे और उनके प्रमुख भी हुआ करते थे। न्याय विभाग के प्रमुख का राज व्यवस्था और समाज में काफी मान सम्मान हुआ करता था। न्यायप्रियता की ऐसी ही एक मिसाल केरल में देखने को मिलती है।
तकरीबन 200 साल पहले त्रावणकोर रियासत में जज रहे गोविंद पिल्लै ने एक गलत जजमेंट के लिए खुद को फांसी की सजा दे दी थी। अब केरल में उनका मंदिर है। केरल के कोट्टायम जिले में स्थित चेरुवल्ली देवी मंदिर में जजयम्मावन (Judgiyammavan) यानी जज अंकल की पूजा होती है। माना जाता है कि वे अदालतों से जुड़े मामलों में परेशान लोगों की प्रार्थनाएं सुनते हैं और उन्हें मानसिक शांति देते हैं। हालांकि, त्रावणकोर देवासम बोर्ड (TDB) के अधीन इस मंदिर की मुख्य देवी भद्रकाली हैं, लेकिन दक्षिण भारत के कई नामी लोग, फिल्मी सितारे और यहां तक कि न्यायपालिका से जुड़े लोग भी जजयम्मावन के दर्शन के लिए यहां आते हैं। हाल ही में यह मंदिर तब चर्चा में आया, जब अभिनेता दिलीप को 2017 के अपहरण और दुष्कर्म मामले में 8 दिसंबर 2025 को अदालत ने बरी कर दिया। मामला दर्ज होने के बाद 2019 में एक्टर दिलीप अपने भाई के साथ यहां पूजा-अर्चना और चढ़ावा चढ़ाने आए थे।

करीब 200 साल पहले त्रावणकोर रियासत पर कार्तिका तिरुनाल राम वर्मा का शासन था, जिन्हें धर्मराजा (न्यायप्रिय राजा) कहा जाता था। 7 जुलाई 1758 से 17 फरवरी 1798 तक उनका शासनकाल त्रावणकोर का सबसे लंबा रहा। वे प्राचीन न्याय व्यवस्था और कानून के पालन के लिए प्रसिद्ध थे। राजा की अदालत में गोविंद पिल्लै नाम के एक जज थे, जो तिरुवल्ला के पास थलावडी स्थित रामवर्मठ परिवार से थे। वे संस्कृत के विद्वान थे और राजा की तरह ही कानून और न्याय के मार्ग से कभी नहीं डिगे।
एक बार गोविंद पिल्लै के भतीजे पद्मनाभ पिल्लै पर एक गंभीर आरोप लगा और मामला उसी की अदालत में चला। सबूतों और दलीलों को सुनने के बाद जज ने अपने भतीजे को दोषी मानते हुए उसे फांसी की सजा सुना दी, लेकिन फांसी के कुछ समय बाद गोविंद पिल्लै को यह जानकर गहरा आघात लगा कि उनका फैसला गलत था और उनका भतीजा वास्तव में निर्दोष था। अपने ही भतीजे को गलत फैसले के कारण मौत की सजा दिलाने का अपराधबोध जज पिल्लै सहन नहीं कर पाए। उन्होंने राजा से खुद को सजा देने की मांग की। राजा ने पहले इनकार किया, लेकिन बाद में मान गए और सजा सुनाने का काम भी गोविंद पिल्लै को ही सौंप दिया। गोविंद पिल्लै ने खुद को जो सजा दी, वह बेहद कठोर और भयावह थी। उन्होंने आदेश दिया कि उनके दोनों पैर काटकर उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया जाए और शव तीन दिन तक उसी जगह टंगा रहने दिया जाए। जल्द ही इस आदेश को लागू कर दिया गया।
कुछ समय बाद इलाके में अशुभ घटनाएं होने लगीं। तब एक ज्योतिषी से सलाह ली गई। ज्योतिषी ने बताया कि जज और उनके भतीजे की आत्माएं मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाई हैं। इसके बाद जज की आत्मा को चेरुवल्ली के पय्यम्बल्ली स्थित उनके पारिवारिक घर में समाधि दी गई, जबकि भतीजे की आत्मा को करीब 50 किलोमीटर दूर तिरुवल्ला के एक मंदिर में स्थान मिला। बाद में चेरुवल्ली देवी मंदिर में जजयम्मावन की मूर्ति स्थापित की गई। वर्ष 1978 में जज के वंशजों ने मंदिर प्रांगण में मुख्य देवी से बाहर, उनके लिए एक अलग गर्भगृह का निर्माण कराया।
यह मंदिर प्रतिदिन केवल करीब 45 मिनट के लिए खुलता है। यहां पूजा-अर्चना रात करीब 8 बजे शुरू होती है, जब भद्रकाली देवी के मुख्य गर्भगृह के कपाट बंद हो जाते हैं। यहां मुख्य प्रसाद ‘अड़ा’ है, जो कच्चे चावल के आटे, चीनी या गुड़ और कद्दूकस किए नारियल से बनाया जाता है। इसके अलावा नारियल पानी, पान के पत्ते और सुपारी भी चढ़ाई जाती है। चेरुवल्ली देवी मंदिर पोनकुन्नम और मणिमाला के बीच, पुनालूर-मुवाट्टुपुझा हाईवे पर स्थित है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन कोट्टायम है, जो करीब 37 किलोमीटर दूर है।

