वही अबोहवा, वही सिस्टम, वही चेहरे लेकिन मॉडल जिले की सोच बदलने से गांव में डेरा डालने लगे हैं अधिकारी
जिन लोगों के कारण हम सारी सुविधाएं भोग रहे हैं। इसके एवज में आखिर हम उन्हें दे क्या रहे हैं?- जिलाधिकारी


चम्पावत। मॉडल जिले की तासीर, तामीर एवं फिजा में आए बदलाव का असर अब जमीन पर यूं ही नहीं दिखाई देने लगा है। ग्रामीण जनजीवन के बीच रात बिताने एवं उनकी दिक्कतों को नजदीक से देखने व समझने के लिए मुख्य सचिव जैसे सर्वोच्च ब्यूरोक्रेट्स के आदेश या तो हवा में उड़ जाया करते थे या वे अखबारी बयानों तक की सीमित रहा करते थे। लेकिन मॉडल जिले की फिजा में अब सब कुछ वही पुराना है, बदली है तो नई कार्य संस्कृति, सोच, सोचने समझने , लोगों की दिक्कतों व कठिनाइयों को इस नजरिए से देखा जाने लगा है कि “यदि मुझे या मेरे परिवार को यह सब झेलना पड़ता तो क्या होता”? इस सोच से दूसरे के दर्द को समझा जाने लगा है। जिले के सबसे दुरुस्त साल- टाण गांव की जीवन के 90 बसंत देख चुकी हेमा आमा, नीला आमा, गंगू बूबु, नीत्तू बूबु ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके बीच डॉक्टरों का जिले का मुखिया सीएमओ उनके बीच रात में रुककर उनका हाल-चाल जानने के लिए आएगा। ग्रामीणों ने जिस आत्मीयता एवं दिल की गहराइयों से उनका स्वागत किया, उसमें भले ही कोई दिखावा या मिलावट नहीं था लेकिन स्नेह एवं प्रेम का ऐसा भाव था जिसे ना तो सीएमओ डॉ देवेश चौहान कभी भूल सकते हैं और ना हीं वह यहां की स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयां की अनदेखी ही कर सकते हैं। इतने दूरस्थ गांव में पंचायती चुनाव के बावजूद लोगों के आपसी रिश्तों में घुली मिठास एक दूसरे के पूरक बनने की भावनाओं ने ही गांव के एक जागरूक युवक चंद्रशेखर गढ़कोटी को ‘प्रधानी’ का खुंटा बनाकर सभी उम्र के लोग उसमें बंधे हुए है। गांव का ऐसा स्वस्थ सामाजिक माहौल देखकर सीएमओ भी ‘अबाक’ रह गए और जाते वक्त कह गए कि अब यह क्षेत्र मेरा ‘मायका’ बन गया है।



इधर बाराकोट के ढूंगा गांव की सड़क बंद होने से दो साल से परेशान लोग जब डीएम के जनमिलन कार्यक्रम में अपनी दिक्कते लेकर आए हुए थे तो दूसरे दिन की शाम को ही सड़क खुल गई। इसी प्रकार वल्सों- जमरेड़ी मै एक माह से बंद पड़ी सड़क के कारण मतदान करने में लोगों की असमर्थता की जानकारी जिला प्रशासन को मिलने के बाद दूसरे दिन ही लोगों के मुरझाए चेहरे में मुस्कान के साथ उनमें भविष्य की आस भी देखी गई। चौड़ाकोट गांव की 15 वर्षीय मां और बाप का साया खो चुकी जीवंती मौनी अपनी समस्या के लिए दफ्तरों के चक्कर काटते काटते हताश व निराशा हो चुकी थी, इसकी समस्याओं का एक ही झटके में निराकरण होने से उस 'अनाथ' बालिका को कितनी खुशी हुई होगी? इसका अंदाजा स्वयं लगाया जा सकता है। यह सब बदलाव एक गरीब किसान के बेटे मनीष कुमार के जिलाधिकारी के रूप में मॉडल जिले में आने के बाद इस सोच ने बदला है कि "जिन लोगों के कारण हमें मोटी सैलेरी बंगले, घोड़ा - गाड़ी की सुविधा मिल रही है, उसके एवज में हम आखिर उन्हें दे क्या रहे हैं"? "दूसरों का दर्द अपना समझकर कार्य करेंगे तो हमारा स्वतः बदल जाएगा कार्य और व्यहवार"। इस सोच ने मॉडल जिले के अधिकारियों का दृष्टिकोण ही बदल दिया है।



