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वन्य जीव-मानव संघर्ष में जान जाने पर दी जाए 25 लाख रुपये की आर्थिक सहायता

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वन पंचायत सरपंच संगठन मुख्यमंत्री व प्रमुख वन संरक्षक को ज्ञापन भेज कर उठाईं 11 मांगें

चम्पावत। वन पंचायत सरपंच संगठन ने मुख्यमंत्री व प्रमुख वन संरक्षक को ज्ञापन भेज कर वन पंचायतों के अधिकार बढ़ाने की मांग की है। इसके साथ ही संगठन ने वन्य जीव-मानव संघर्ष में जान जाने पर 25 लाख रुपये राहत के रूप में मृतकाश्रित को देने के अलावा एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग के साथ ही 10 अन्य मांगें भी उठाई हैं। संगठन ने 15 दिनों के भीतर ठोस कार्रवाई नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी भी दी है।

संगठन ने सीएम कैंप कार्यालय के माध्यम से मुख्यमंत्री के साथ ही डीएम व डीएफओ के माध्यम से प्रमुख वन संरक्षक को ज्ञापन भेजा। जिसमें संगठन ने कहा है कि उत्तराखंड बनने के बाद से लगातार नियमों में बदलाव कर वन पंचायतों की स्वायत्तता पर चोट की जा रही है। वन पंचायतों में ग्रामवासियों की स्वायत्ता व सरपंचों के अधिकारों में कुठारघात वनों की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है। वन विभाग ने लगातार संशोधन कर वन पंचायतों में नियंत्रण कर रखा है, जो वन पंचायतों के साथ अन्याय है। इस कदम से ग्रामीणों का जगंलों के प्रति लगाव कम हो रहा है। सरपंचों ने इसमें बदलाव की मांग की है। सरपंच संगठन के जिलाध्यक्ष दान सिंह कठायत के नेतृत्व में ज्ञापन देने वालों में राज्य आंदोलनकारी हरगोविंद बोहरा, ब्लॉक अध्यक्ष राजेंद्र सिंह भंडारी, नारायण सिंह बोहरा, प्रेम सिंह, महेश चंद्र, बृजेश जोशी, कुंदन सिंह, गोपाल सिंह आदि शामिल रहे।

सरपंच संगठन की मांगें :-

1- वन पंचायत नियमावली 2005 के नियम के तहत क्षेत्रीय, जिला और राज्य स्तरीय परामर्शदाती का गठन नहीं किया गया है। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई की जाए।
2- वन पंचायत नियमावली 2024 में राज्य स्तरीय परामर्शदाता समिति से जिला समन्वयकों को सदस्यता से हटा दिया गया है। उन्हें फिर से शामिल किया जाए।
3- वनाग्नि समिति में ग्राम प्रधान / प्रशासक को अध्यक्ष बना कर सरपंचो के अधिकारों का हनन किया गया है। इससे सरपंचों का मनोबल कम हुआ है। इसमें बदलाव हो।
4- सरपंचों को अपनी मुहर का प्रयोग 2 सदस्यों की उपस्थिति में करना होता है। इस नियम में संशोधन का सरपंचों को अन्य वनाधिकारियों की तरह ही अपनी मुहर का भी प्रयोग करने का अधिकार हो।
5- वन पंचायतों में विभाग से अनावश्यक हस्तक्षेप ना हो।
6- चौड़ी पत्ती के जंगलों के संरक्षण के लिए नीति बनाई जाए।
7- वन पंचायतों व ग्रामीणों को विश्वास में लेने से वनाग्नि में नियत्रंण में मदद मिलेगी।
8- वन्य जीव-मानव सघर्ष में जान जाने पर कम से कम 25 लाख रुपये राहत के रूप में मृतकाश्रित को देने के अलावा एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिले।
9- जंगली जानवरों से खेती की सुरक्षा का ठोस उपाय किया जाए, ताकि पलायन पर रोक लग सके।
10- नियमावली में कई बार संसोधन कर अपनी बनायी गयी नियमावली का विभागों द्वारा सही से प्रयोग नहीं किया गया इसलिए नियमावली 1931 वन पंचायतों में लागू की जाए या वन पंचायत अधिनियम वन पंचायतों को विश्वास में लेकर बनाया जाए अथवा वनाधिकार कानून 2006 जो पूरे देश में लागू है, को वन पंचायतों को भी वनाधिकार के दायरे में लाया जाए अन्यथा वन पंचायत से 2006 की पैरवी के अन्तर्गत लाने की मांग करेंगे।
11- वन पंचायत नियमावली 2024 में वन पंचायत का गठन कर सरपंच के चयन में दो (ग्राम प्रधान व एक अध्यक्ष के द्वारा नामित) व्यक्ति नामित किया जाना अन्यायपूर्ण है। वन पंचायत सरपंच की चयन प्रक्रिया पूर्व की तरह हो।

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