सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पति के साथ रहने से इनकार करने वाली पत्नी को भी देना होगा भरण-पोषण
केवल इसलिए पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार करना अनुचित और अन्यायपूर्ण होगा क्योंकि उसने पति के साथ सहवास करने से इनकार कर दिया है
नई दिल्ली। देश की उन महिलाओं के लिए राहत वाली खबर है, जो अलगाव की स्थिति में पति से आर्थिक मदद पाने की लड़ाई लड़ रही हैं। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि भरण-पोषण पत्नी का अधिकार है, चाहे वह पति के साथ न रह रही हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पति अपनी अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण देने से सिर्फ इस आधार पर इनकार नहीं कर सकता कि उसे वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश मिल चुका है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और संजय कुमार की अगुवाई वाली पीठ ने 10 जनवरी को फैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय में इस सवाल पर सुनवायी की जा रही थी कि, “क्या एक पति, जो वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए आदेश प्राप्त करता है, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 (4) के आधार पर अपनी पत्नी को भरण-पोषण देने से मुक्त हो जाएगा, अगर उसकी पत्नी उक्त आदेश का पालन करने और वैवाहिक घर लौटने से इनकार करती है।”?
पीठ ने झारखंड उच्च न्यायालय के अगस्त 2023 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें महिला को भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया गया था। क्योंकि, वह महिला वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के बावजूद अपने पति के साथ रहने नहीं आई। कोर्ट के पास यह तथ्य रखे गये थे कि पति लगातार अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करता था। अदालत ने कहा कि उसके वापस न आने के अच्छे कारण थे। कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह अगस्त 2019 में आवेदन करने के दिन से भरण-पोषण का भुगतान करे।
तलाकशुदा पत्नी को भी है भरण-पोषण पाने का अधिकारः दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 2022 में दिए गए बबीता बनाम मुन्नाल लाल के फैसले का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश की मौजूदगी ही पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने से वंचित करने के लिए अपर्याप्त है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “यह देखा गया कि तलाकशुदा पत्नी भी धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण पाने की हकदार है और केवल इसलिए पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार करना अनुचित और अन्यायपूर्ण होगा क्योंकि उसने पति के साथ सहवास करने से इनकार कर दिया है, जबकि इसके लिए पर्याप्त आधार हैं।”
भरण-पोषण से इनकार का कठोर नियम नहीं हो सकता
सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि धारा 125 के तहत भरण-पोषण से इनकार करने वाला कोई कठोर नियम नहीं हो सकता है, जो उस पत्नी को दिया जाए जो अपने पति के पास लौटने से इनकार करती है और यह अनिवार्य रूप से प्रत्येक विशेष मामले में प्राप्त विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर होना चाहिए। पीठ ने कहा, “किसी भी स्थिति में, पति द्वारा सुरक्षित वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक डिक्री और पत्नी द्वारा उसका पालन न करना, उसके भरण-पोषण के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकता।”
पहले के फैसले का दिया हवालाः पीठ ने कहा कि यह माना गया था कि धारा 125 सीआरपीसी सामाजिक न्याय का एक उपाय है। संविधान के अनुच्छेद 39 द्वारा सुदृढ़ किए गए अनुच्छेद 15(3) के संवैधानिक दायरे में आता है। न्यायालय ने कहा, “इस प्रकार, इस प्रावधान का उद्देश्य, तब और अब, निराश्रित पत्नियों, बच्चों और अब, माता-पिता की वित्तीय दुर्दशा को कम करना है, जिन्हें खुद की देखभाल करने के लिए छोड़ दिया गया है।”