लालकुआं हरदा के लिए साबित हुआ राजनैतिक रूप से ‘मौत का कुआं’, इन्होंने डुबोई लुटिया

हल्द्वानी। प्रदेश की सबसे हॉट सीट मानी जा रही लालकुआं विधानसभा में हरीश रावत बुरी तरह पराजित हुए हैं। हरीश रावत की हार से न सिर्फ पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल और हरेंद्र बोरा की साख पर बट्टा लगा है बल्कि चुनाव में हरदा के खासम खास बनने वाले नेताओं ने भी हरदा की मिट्टी कूट दी। 3 दिन में चुनावी माहौल उठाने की बात कहने वाले हरेंद्र बोरा के समर्थकों को तो अपने बूथ बचाने तक लाले पड़ गए। यही हाल दुर्गापाल समर्थकों का भी हुआ और बड़े-बड़े दावे हवाई बुलबुले साबित हुए। आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस 122 बूथ में से केवल 22 बूथ जीतने में ही कामयाब रही। जिसे कांग्रेसी अपना गढ़ बता कर हरदा की जीत का ढोल पीट रहे थे उसी बिंदुखत्ता में कांग्रेसियों का ढोल फट गया और करारी हार मिली। ओवरकॉन्फिडेंस में हरीश रावत के बगल में घूमने वाले नेता बड़े मार्जन से जीत का गुबार बना रहे थे, जिसकी मतगणना के बाद हवा निकल गई। चुनाव से ठीक 19 दिन पहले हरीश रावत को लालकुआं विधानसभा में आमंत्रित करने वाले हरिश चंद्र दुर्गापाल और हरेंद्र बोरा भी इस चुनाव में अपनी भदद पिटवा गए। कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं को इग्नोर करके ग्राम प्रधान और बीडीसी और चुनिंदे नेताओं के सहारे चुनाव जीतने की राजनीति पर पूरी तरह पानी फिर गया। 2017 के चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद भी हरीश चंद्र दुर्गापाल और हरेंद्र बोरा दोनों को मिलाकर 31894 मत मिले थे, लेकिन इस बार हरीश रावत इस आंकड़े को भी नहीं छू पाए जबकि दोनों जन प्रतिनिधि हरीश रावत को चुनाव लड़ा रहे थे।

