जिम कॉर्बेट की विरासत से रूबरू कराएगी ‘ऑन द ट्रेल जिम कॉर्बेट’, करीब से जान सकेगी दुनिया सौ साल पुराना इतिहास
गांव के गांव उजाड़ने वाले नरभक्षी बाघों का सामना कर बेखौफ होकर उनको मौत के घाट उतारने वाले जिम कार्बेट को हमेशा से ही एक महान शिकारी के रूप में याद किया जाता है, लेकिन जिम कार्बेट प्रकृति व पशु प्रेमी भी थे। महान शिकारी से वे कब प्रकृति व पशु प्रेमी बने इसके लिए उनके जीवन से जुड़े सभी पहलुओं से रूबरू होना बेहद जरूरी है। वहीं यह भी सही है कि जिम कॉर्बेट के नाम से जुड़कर उत्तराखंड के कालाढूंगी को पूरी दुनिया में विशेष पहचान मिली है। कालाढूंगी में आज भी जिम कॉर्बेट का अपना घर (संग्रहालय) और बसाया हुआ गांव छोटी हल्द्वानी है। नई पीढ़ी को जिम कॉर्बेट और उनके परिवार से रूबरू कराने के लिए राज्य सरकार, वन विभाग और केतरी नॉबल रेंजर्स मिलकर एक फिल्म बना रहे हैं। कहा जा रहा है कि ये फिल्म जिम कार्बेट के शिकारी से प्रकृति व पशु प्रेमी होने की यात्रा से देश दुनिया को अवगत कराएगी।
‘ऑन द ट्रेल जिम कॉर्बेट’ नाम से बनाई जाने वाली इस फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई है। फिल्म की शूटिंग करने वाली टीम द्वारा वन्य जीव वैज्ञानिक, वन अधिकारियों का सहयोग लिया जा रहा है। इस फिल्म को बनाने में वाली टीम में बेंगलुरु के वन्यजीव वैज्ञानिक एजेटी जानसिंघ, भारतीय वनजीव संस्थान से सेवानिवृत्त डॉ. जेएस रावत, आशीष, कैप्टन मोहित जोशी, श्वेता खुल्बे जोशी, गुरु जी आदि शामिल हैं। डॉ. जेएस रावत ने बताया कि इस फिल्म का उद्देश्य जिम कॉर्बेट व उनकी विरासत से युवाओं को रूबरू कराना है। लोगों के प्रति जिम कॉर्बेट व उनके परिवार का कैसा रवैया था, यह भी फिल्म के माध्यम से दिखाया जाएगा। जिम कॉर्बेट की जन्मस्थली नैनीताल, कर्मस्थली कालाढूंगी सहित उनके जीवन से जुड़े देवीधुरा, चम्पावत, कालागढ़, मोहान, कॉर्बेट नेशनल पार्क रामनगर में फिल्म की शूटिंग की जाएगी।
उन्होंने बताया कि 100 साल पहले जिम कॉर्बेट से जुड़े क्षेत्र कैसे थे, आज कैसे हैं, यहां अब क्या परिवर्तन हुआ, वन्यजीव एवं पर्यावरण संरक्षण पर यहां कितना काम हो रहा है, यह भी इस फिल्म के माध्यम से दिखाया जाएगा। यहां के लोगों को ईको टूरिज्म से जोड़कर स्वरोजगार से कैसे जोड़ा जा सकता है, ऐसा मार्गदर्शन भी यह फिल्म करेगी। आज मानव-वन्यजीव संघर्ष की तमाम घटनाएं हो रहीं हैं। जंगलों से वन्यजीव कम हो रहे हैं। बाघ, तेंदुए आबादी की तरफ आ रहे हैं और मवेशियों को भी शिकार बना रहे हैं। इस समस्या का क्या हाल हो सकता है, फिल्म में यह भी खोजने की कोशिश की जा रही है।
पर्यटक स्थलों का सरंक्षण जरूरी
डॉ. जेएस रावत ने कहा कि कई पर्यटन स्थलों पर पॉलीथिन, प्लास्टिक काफी तादाद में पड़ा हुआ है, जो प्रकृति के लिए नुकसानदेह है, इसके लिए जनता को भी जागरूक होना होगा। क्षेत्र की विरासत, पर्यावरण आदि की जागरूकता के लिए स्कूलों में भी बच्चों के लिए अलग से विषय शुरू करने की जरूरत है। कहा कि जंगलों के साथ ही उत्तराखंड की नदियां और महाशीर मछलियों का संरक्षण बहुत जरूरी है।