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हल्द्वानी हिंसा : अब्दुल मलिक और उसके बेटे पर लगाया गया UAPA, जानें क्या है यूएपीए कानून

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हल्द्वानी हिंसा के मास्टरमाइंट अब्दुल मलिक और उसके बेटे पर पुलिस ने 16 धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। अब उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) भी लगाया गया है। यूएपीए लगने के कारण आरोपितों को 90 दिन तक जमानत नहीं मिल सकेगी। पुलिस ने आठ फरवरी को बनभूलपुरा में हुए उपद्रव में अब्दुल मलिक और उसके बेटे अब्दुल मोईद के खिलाफ बनभूलपुरा थाने में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 307, 395, 323, 332, 341, 342, 353, 427 और 436 में मुकदमा दर्ज किया। इसके साथ उन पर उत्तराखंड लोक संपत्ति अधिकार अधिनियम, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमा दर्ज किया था। गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपी को तीन महीने तक जमानत नहीं मिलती है। इसके बाद कोर्ट चाहे तो जमानत दे सकती है। ये ही धाराएं अब्दुल मोईद सहित नामजद आरोपियों पर भी लगाई गई हैं।

UAPA: गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम

UAPA का फुल फॉर्म Unlawful Activities (Prevention) Act होता है। इसका मतलब है गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम। इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है। इस कानून के तहत पुलिस ऐसे आतंकियों, अपराधियों या अन्य लोगों को चिह्नित करती है, जो आतंकी ग​तिविधियों में शामिल होते हैं। इसके लिए लोगों को तैयार करते हैं या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। इस मामले में एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को काफी शक्तियां होती हैं। यहां तक कि एनआईए महानिदेशक चाहें तो किसी मामले की जांच के दौरान वह संबंधित शख्स की संपत्ति की कुर्की-जब्ती भी करवा सकते हैं।

1967 में आया कानून, 2019 में संशोधन के बाद और मजबूत हुआ
यूएपीए कानून 1967 में लाया गया था। इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दी गई बुनियादी आजादी पर तर्कसंगत सीमाएं लगाने के लिए लाया गया था। पिछले कुछ सालों में आतंकी गतिविधियों से संबंधी POTA और TADA जैसे कानून खत्म कर दिए गए, लेकिन UAPA कानून अब भी मौजूद है और पहले से ज्यादा मजबूत है.

अगस्त 2019 में ही इसका संशोधन बिल संसद में पास हुआ था, जिसके बाद इस कानून को ताकत मिल गई कि किसी व्यक्ति को भी जांच के आधार पर आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। पहले यह शक्ति केवल किसी संगठन को लेकर थी। यानी इस एक्ट के तहत किसी संगठन ​को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाता था। सदन में विपक्ष को आपत्ति पर गृहमंत्री अमित शाह का कहना था कि आतंकवाद को जड़ से मिटाना सरकार की प्राथमिकता है, इसलिए यह संशोधन जरूरी है। इस कानून के तहत किसी व्यक्ति पर शक होने मात्र से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं होगा। आतंकवादी का टैग हटवाने के​ लिए उसे कोर्ट की बजाय सरकार की बनाई गई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा। हालांकि बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है।