उत्तर प्रदेशक्राइमनवीनतम

कुसुमा नाइन की मौत : देश की सबसे खूंखार महिला डाकू, फूलन को पेड़ पर लटकाकर पीटा; लोगों की निकाल लेती थी आंखें

Ad
ख़बर शेयर करें -

इटावा जेल में हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रही पचनद के जंगलों की कुख्यात डकैत कुसुमा नाइन की लखनऊ में इलाज के दौरान मौत हो गई। उस पर हत्या सहित करीब दो दर्जन मामले दर्ज थे। देश में जितनी भी दस्यु सुंदरियां हुई हैं, उनमें कुसमा सबसे खूंखार मानी जाती थी।

Ad

सिरसाकलार थाना क्षेत्र के टिकरी गांव निवासी डरू नाई की पुत्री कुसुमा नाइन का जन्म 1964 में हुआ था। उसके पिता गांव के ग्राम प्रधान थे। जबकि चाचा गांव में सरकारी राशन के कोटे की दुकान चलाते थे। वह इकलौती संतान होने के चलते परिवार उसे बड़े लाड़ प्यार से पाल रहे थे। लेकिन जब वह 13 साल की हुई तो उसे पड़ोसी माधव मल्लाह से प्रेम प्रसंग हो गया और वह उसके साथ चली गई। करीब दो साल तक उसका कोई पता नहीं चला।

माधव के साथ आ गई थी दिल्ली
इसके बाद उसने अपने पिता डरू को चिट्ठी लिखी कि वह दिल्ली के मंगौलपुरी में माधव के साथ है। तब पिता दिल्ली पुलिस के साथ पहुंचे और उसे घर ले आए। इसके बाद पिता ने उसकी शादी कुरौली गांव निवासी केदार नाई के साथ कर दी। चूंकि माधव कुसुमा से प्रेम करता था तो उसने यह बात अपने रिश्तेदार दस्यु विक्रम मल्लाह को बताई। इस पर विक्रम मल्लाह माधव को लेकर अपने एक दर्जन गैंग के साथियों के साथ कुसुमा की ससुराल पहुंचा और कुसुमा को अगवा कर लिया। इसके बाद वह माधव के साथ विक्रम गैंग में शामिल हो गई। विक्रम और फूलन देवी एक ही गैंग में काम करते थे, इससे कुसुमा के आने से उनमें विवाद होने लगा। इस पर कुसुमा को दस्यु लालाराम को मारने को कहा गया। लेकिन कुसुमा ने उसे नहीं मारा और वह लालाराम की गैंग में शामिल हो गई।

15 लोगों की हत्या की, मां-बच्चे को जिंदा जलाया
इसके बाद उसने वर्ष 1984 में कानपुर देहात के आस्ता गांव की घटना को अंजाम दिया। जिसमें 15 लोगों की हत्या की गई और एक महिला और उसके बच्चे को जिंदा जला दिया गया। इन अपराधों ने उसे चंबल के सबसे खतरनाक डकैतों में से एक बना दिया। इसके बाद वह डकैत रामआसरे उर्फ फक्कड़ बाबा के संपर्क में आ गई।

जेल में कैदियों को पढ़ाया रामायण
2004 में कुसुमा और उनके साथी फक्कड़ बाबा ने पुलिस के सामने समर्पण कर दिया। इसके बाद वह जेल में पुजारिन बन गईं और कैदियों को रामायण पढ़ाने लगीं। इटावा जेल में उम्रकैद की सजा काट रही कुसुमा की हालत बिगड़ने पर उसे लखनऊ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। जहां शनिवार की रात उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई। वह 61 वर्ष की थी। उसके खिलाफ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 35 से अधिक मामले दर्ज थे, जिसमें हत्या, लूट, और अपहरण शामिल हैं।

मांग में सिंदूर भर रही कुसुमा को शीशे में दिखी पुलिस, थानाध्यक्ष सहित दो को मार दी थी गोली
चुर्खी थाना क्षेत्र के एक गांव में 1982 में लालाराम व कुसुमा का गैंग रुका हुआ था। पिथऊपुर के पीछे इस गांव में डकैत अक्सर रहा करते थे। जानकारी जब तत्कालीन चुर्खी थानाध्यक्ष केलीराम को हुई, तो वह दबिश देने गांव पहुंच गए। उस समय कुसुमा शीशा लेकर अपनी मांग में सिंदूर भर रही थी। जैसे ही उसे शीशे में पुलिस दिखी तो उसने पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी थी। इस घटना में थानाध्यक्ष केलीराम और सिपाही भूरेलाल की मौत हो गई थी। विभिन्न थानों की फोर्स के साथ एसपी जब तक पहुंचे लालाराम, कुसुमा बीहड़ों की ओर भाग गए थे। कुसुमा पुलिस की दो थ्री नाट थ्री रायफल लूट ले गई थी।

फूलन को पेड़ से लटकाकर कुसुमा ने राइफल के बटों से पीटा था
वर्ष 1980 में लालाराम व विक्रम मल्लाह गैंग में दो महिलाएं शामिल हो गई थीं। फूलन विक्रम के संपर्क में थी। जबकि कुसमा माधव के साथ रह रही थी। इसी बीच फूलन और कुसुमा में तमाम बातों को लेकर प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गई। एक दिन मौका पाकर विक्रम मल्लाह को मार डाला गया। दिसंबर 1980 में जगम्मनपुर में छह अपहरण हुए थे, उनमें रूपसिंह यादव भी शामिल थे। तब उनकी उम्र मुश्किल से 18 वर्ष की रही होगी। तभी रूप सिंह फूलन पर फिदा हो गया। लौटते वक्त फूलन ने अपनी टाइम स्टार की कलाई घड़ी रूप सिंह को भेंट की थी। रूप सिंह को बताया था कि एक बार बबूल के पेड़ से फूलन के हाथ बांधकर नंगा लटका दिया था। यह काम लालाराम और कुसुमा ने मिलकर किया था। इसके बाद कुसुमा नाइन ने राइफल की बट से उसे बेरहमी से पीटा था। कुसुमा के दिए जख्म फूलन के दिलोदिमाग पर उस वक्त तक पूरे तरह हरे थे। वह उसका बदला भी लेना चाहती थी पर जीते जी कभी संभव नहीं हो राया।

रस्सी से बांधकर पेड़ में टकराकर डंडों से पीटती थी अपह्रत को कुसमा नाईन
जब कोई व्यक्ति इस गैंग की पकड़ में आ जाता था। तो उसकी सही माली हालत जानने के लिए उसे रस्सियों से बांधकर उसे पेड़ की डाल में उल्टा लटकाकर डंडों से बुरी तरह पीटती थी कुसमा नाइन। इसके बाद वह उनके घर वालों से उसी हिसाब से फिरौती मांगती थी। उसकी मार से बिलबिलाया हुआ अपहत अपने घर वालों को चिट्ठी लिखकर फिरौती मांगता था।
कुसुमा के कहने से गांव में बन जाते थे प्रधान
जिस गांव के लोगों को वह बात मानती थी। डकैत बनने के बाद वह उन्हीं लोगों की जान की दुश्मन बन गई। उसने गांव में कई लोगों के यहां डकैती डाली। इससे वहां के लोग उससे दहशत मानने लगे। उसका इस कदर दबदबा बन गया कि वह गांव में जिसको कह देती वह प्रधान बन जाता था। अगर उसको पता चल जाता था कि कोई उसका विरोध कर रहा है, तो वह उसे पकड़वाकर उसकी पिटाई कर देती थी।

15 मल्लाहों को लाइन में खड़ा कर मार दी थी गोली
चंबल के बीहड़ों में करीब 25 साल तक दहशत फैलाने वाली कुसमा नाइन ने 1984 में औरैया के मई अस्ता गांव में 15 मल्लाहों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी थी। कुसमा ने इसे फूलनदेवी के बेहमई कांड का प्रतिशोध बताया था।

विक्रम मल्लाह से करती थी प्रेम
1964 में जालौन के टिकरी गांव में पैदा हुई कुसमा नाइन को माधव मल्लाह से प्रेम हो गया था। वह उसके साथ चली भी गई थी। इसका पिता ने विरोध किया था और दिल्ली पुलिस से पकड़वा लिया था। इसके बाद उसकी दूसरी जगह शादी कर दी थी। माधव मल्लाह विक्रम मल्लाह डकैत का परिचित था। शादी के कुछ समय बाद ही डकैत विक्रम मल्लाह कुसमा नाइन को उसकी ससुराल से उठा लाया था। कुछ समय बाद फूलन देवी से अनबन के बाद कुसमा राम आसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ गैंग में शामिल हो गई थी।

फूलन ने मारे थे 22 ठाकुर
1980 से उसने गैंग में अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी। 14 मई 1981 में डकैत फूलन ने 22 ठाकुरों को गोली मार दी थी। इस कांड के बाद डाकू फक्कड़ और उसकी माशूका बन चुकी कुसुमा अपनी दहशत बढ़ाने के लिए बेताब थे। इस बीच 1982 में फूलन ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद फक्कड़ और कुसुमा ने साल 1984 में औरैया के मई अस्ता गांव में पहुंचकर 15 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर गोली मार दी थी। उनके घरों को आग लगा दी थी। इससे उसका आतंक बढ़ गया था। कुसुमा इतनी क्रूर थी कि वह जिनका अपहरण करती उनके बदन पर चूल्हे की जलती हुई लकड़ी लगा देती थी। जंजीरों से बांध कर हंटर से मारती थी।

1988 में भरेह के दो लोगों की निकाल ली थी आंखें
साल 1998 में राम आसरे उर्फ फक्कड़ और कुसमा नाइन का फरमान नहीं मानने पर औरैया जिले के असेवा गांव के मल्लाह बिरादरी के संतोष और राजबहादुर को गैंग के लोग उठाकर भरेह क्षेत्र में ले आए थे। यहां सजा के रूप में दोनों की आंखें निकाल दी थीं।

पेड़ काटने पर नाराज कुसमा ने ग्रामीणों को पीटा था
बदनपुरा निवासी गौरी (70) ने बताया कि क्वांरी नदी किनारे दोपहर में मैं, जय सिंह, मटयाले निवासी की रामफल की गढ़िया बकरियां चराने गए हुए थे। इस बीच फकक्ड़ गैंग के लोग आ गए थे। कुसमा नाइन सड़क किनारे बकरियों के लिए काटकर डाले गए पेड़ देखकर गुस्सा गई। उसने चारों लोगों को लाइन में खड़ा करके बेल्टों से पीटा था।

बेहमई कांड के बदले की आग में कुसुमा नाइन ने डकैतों संग किया था नरसंहार
इटावा जेल में बंद दस्यु कुसुमा नाइन की बीमारी के चलते मौत हो गई। यह खबर लगते ही बीहड़ पट्टी के अस्ता गांव के 12 लोगों में नरसंहार की चीखें ताजा हो गईं। लोगों का कहना है इन डकैतों ने अपने वर्चस्व को लेकर 12 निर्दोष लोगों को गोलियों से भून दिया था। इसे याद कर आज भी बुजुर्गों की रूह कांप जाती है।

बीहड़ में राज करने व अपने वर्ग के लोगों के पनाहगार बनने की होड़ में दस्युओं ने निर्दोष जनता पर जमकर कहर बरपाया था। लोगों में चर्चा रही कि इसकी शुरुआत दस्यु फूलन देवी ने 20 फरवरी 1981 को कानपुर देहात के बेहमई में 20 लोगों की हत्या कर दी थी। इस घटना का बदला लेने के लिए दस्यु लालाराम, श्रीराम व कुसुमा ने औरैया के अस्ता गांव को वर्ष 1984 में निशाना बनाया।

डकैतों ने बेवजह 12 निर्दोष दर्शन सिंह, रामशंकर, लालाराम, छोटेलाल, धनीराम, महादेव, भीखालाल, शंकर, बांकेलाल, लक्ष्मीनरायन, शिव कुमारी व मुन्वेश को लाइन में खड़ा कर ताबड़तोड़ फायरिंग कर मार डाला था। इसके बाद गांव में आग लगा दी थी। घटना के बाद दस्यु कुसुमा ने सरेंडर कर दिया था।

डकैतों की वर्चस्व की जंग में एक खुशहाल गांव पूरी तरह से बर्बाद हो गया। घटना के बाद नेताओं ने नरसंहार में जान गंवाने वालों की याद में यहां एक स्मारक बनवाया। इसके बाद गांव को नजरअंदाज कर दिया। गांव में विकास न होने से यहां के युवाओं को दूसरे शहरों में जाकर काम करना पड़ रहा है। वहीं कुसुमा की मौत को लेकर ग्रामीणों ने कहना है कि उन्हें इस घटना में पूर्ण रूप से न्याय नहीं मिला है।
गवाही देने पर 28 साल से अंधकार में जीवन काट रहे दो दोस्त
असेवा निवासी संतोष (52) ने बताया कि दस्यु फक्कड़ बाबा उर्फ राम आसरे के भांजे रमाकांत, मोहन और पप्पू ने कामता प्रसाद की हत्या कर दी थी। संतोष ने बताया कि इस मामले का वह चश्मदीद था। उसकी गवाही से भांजों को सजा होने के डर से दस्यु ने उनको सबक सिखाने का एलान किया था। 15 दिसंबर 1996 की रात 10 बजे के करीब कुसुमा नाइन की अगुवाई में करीब 15 डकैतों ने उसके घर को घेर लिया। डकैत उसको व घर पर सो रहे उसके मित्र राजबहादुर (58) सहित गांव के छह लोगों को बंधक बनाकर गांव से चार किमी दूर बीहड़ में ले गए।

वहां डकैतों ने उनके साथ बेरहमी से मारपीट की। इसके बाद धारदार हथियार से उसकी व मित्र राजबहादुर की आंखें फोड़ दीं। शेष चार साथी उन्हें किसी तरह गांव लेकर गए। घटना की रिपोर्ट राजबहादुर के भाई महलवान सिंह ने अयाना थाना में दर्ज कराई थी। दस्युओं के विरोध में आंखें गंवाने वाले दोनों दोस्तों का कहना है कि दस्युओं ने बीहड़ पर जमकर कहर बरपाया था। जिससे आज तक बीहड़ उभर नहीं सका है। विकास न होने से बीहड़ पट्टी के गांवों के लोग शहर की ओर रुख करने लगे हैं।

Ad